Vigyan Vardan Ya Abhishap Par Nibandh
विज्ञान : वरदान या अभिशाप पर
Page Content
ये vigyan vardan ya abhishap par nibandh विभिन्न बोर्ड जैसे UP Board, Bihar Board और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं को दृश्टिगत रखते हुए लिखा गया है, अगर आपके मन सवाल हो तो comment लिख कर पूछ सकते हैं |
इस शीर्षक से मिलते-जुलते अन्य सम्बंधित शीर्षक –
- विज्ञान का सदुपयोग , विज्ञान के लाभ और हानियाँ ,
- विज्ञान और नव – कल्याण , विज्ञान के वरदान ( 2001 , 03 ) ,
- विज्ञान वरदान भी , अभिशाप भी ,
- विज्ञान वरदान या अभिशाप ( 2004 )
” वास्तव में विज्ञान ने जितनी समस्याएँ हल की हैं , उतनी ही नई समस्याएँ खड़ी भी कर दी हैं । ” – श्रीमती इन्दिरा गांधी
जय जवान, जय किसान और जय विज्ञान – अटल बिहारी बाजपाई
Vigyan Vardan Ya Abhishap Par Nibandh आलावा इसे भी पढ़ें :
- Providing Your Panel With the Teaching and Mentorship They Need
- How to Manage Works with a VDR
- How you can Implement the Best Data Bedrooms
- What You Need to Know About Web page design IT
- MS in Business Analytics Online
Vigyan Vardan Ya Abhishap Par Nibandh की रूपरेखा
- प्रस्तावना
- विज्ञान : वरदान के रूप में
- विज्ञान : एक अभिशाप के रूप में
- विज्ञान : वरदान या अभिशाप ?
- उपसंहार
1- प्रस्तावना
यद्यपि इस पृथ्वी पर मनुष्य को उत्पन्न हुए लाखों वर्ष व्यतीत हो चुके हैं , किन्तु वास्तविक वैज्ञानिक उन्नति पिछले दो – सौ वर्षों में ही हुई है ।
साहित्य में विमानों और दिव्यास्त्रों के कवित्वमय उल्लेख के अतिरिक्त कोई ऐसे प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं , जिनके आधार पर यह सिद्ध हो सके कि प्राचीनकाल में इस प्रकार की वैज्ञानिक उन्नति हुई थी ।
एक समय था , जब मनुष्य सष्टि की प्रत्येक वस्तु को कौतुहलपूर्ण व आश्चर्यजनक समझता था तथा उनसे भयभीत होकर ईश्वर की प्रार्थना करता था, किन्त आज विज्ञान ने प्रकृति को वश में करके उसे मानव की दासी बना दिया है ।
आधुनिक युग में विज्ञान के नवीन आविष्कारों ने विश्व में क्रान्ति – सी उत्पन्न कर दी है । विज्ञान के बिना मनुष्य के स्वतन्त्र अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती । विज्ञान की सहायता से मनुष्य प्रकृति पर निरन्तर विजय प्राप्त करता जा रहा है ।
आज से कुछ वर्ष पूर्व विज्ञान के आविष्कारों की चर्चा से ही लोग आश्चर्यचकित हो जाया करते थे ; परन्तु आज वही आविष्कार मनुष्य के जीवन में पूर्णतया घुल – मिल गए हैं । विज्ञान ने हमें अनेक सुख – सुविधाएँ प्रदान की हैं ; किन्तु साथ ही विनाश के विविध साधन भी जुटा दिए हैं।
इस स्थिति में यह प्रश्न विचारणीय हो गया है कि विज्ञान मानव कल्याण के लिए कितना उपयोगी है ? वह समाज के लिए वरदान है या अभिशाप ?
2- विज्ञान : वरदान के रूप में
वरदान के रूप में आधुनिक विज्ञान ने मानव – सेवा के लिए अनेक प्रकार के साधन जुटा दिए हैं । पुरानी कहानियों में वर्णित अलादीन के चिराग का दैत्य जो काम करता था , उन्हें विज्ञान बड़ी सरलता से कर देता है ।
रातो – रात महल बनाकर खड़ा कर देना , आकाश – मार्ग से उड़कर दूसरे स्थान पर चले जाना , शत्रु के नगरों को मिनटों में बरबाद कर देना आदि विज्ञान के द्वारा सम्भव किए गए ऐसे ही कार्य हैं । विज्ञान मानव – जीवन के लिए वरदान सिद्ध हआ है ।
उसकी वरदायिनी शक्ति ने मानव को अपरिमित सुख – समृद्धि प्रदान की है ; यथा
( क ) परिवहन के क्षेत्र में- पहले लम्बी यात्राएँ दुरूह स्वप्न – सी लगती थीं , किन्तु आज रेल , मोटर और वायुयानों ने लम्बी यात्राओं को अत्यन्त सुगम व सुलभ कर दिया है । पृथ्वी पर ही नहीं, आज के वैज्ञानिक साधनों के द्वारा मनुष्य ने चन्द्रमा पर भी अपने कदमों के निशान बना दिए हैं ।
( ख ) संचार के क्षेत्र में – टेलीफोन , टेलीग्राम , टेलीप्रिण्टर , टैलेक्स , फैक्स , ई – मेल आदि के द्वारा क्षणभर में एक स्थान से दूसरे स्थान को सन्देश पहुँचाए जा सकते हैं । रेडियो और टेलीविजन द्वारा कुछ ही क्षणों में किसी समाचार को विश्व भर में प्रसारित किया जा सकता है ।
( ग ) चिकित्सा के क्षेत्र में- चिकित्सा के क्षेत्र में तो विज्ञान वास्तव में वरदान सिद्ध हुआ है । आधुनिक चिकित्सा – पद्धति इतनी विकसित हो गई है कि अन्धे को आँखें और विकलांगों को अंग मिलना अब असम्भव नहीं है । कैसर , टी०बी० , हृदयरोग जैसे भयंकर और प्राणघातक रोगों पर विजय पाना विज्ञान के माध्यम से ही सम्भव हो सका है ।
( घ ) खाद्यान्न के क्षेत्र में- आज हम अन्न उत्पादन एवं उसके संरक्षण के मामले में आत्मनिर्भर होते जा रहे हैं । इसका श्रेय आधुनिक विज्ञान को ही है। विभिन्न प्रकार के उर्वरकों, कीटनाशक दवाओं, खेती के आधुनिक साधनों तथा सिंचाई सम्बन्धी कृत्रिम व्यवस्था ने खेती को अत्यन्त सरल व लाभदायक बना दिया है ।
( ङ ) उद्योगों के क्षेत्र में- उद्योगों के क्षेत्र में विज्ञान ने क्रान्तिकारी परिवर्तन किए हैं । विभिन्न प्रकार मशीनों ने उत्पादन की मात्रा में कई गुना वृद्धि की है । ।
( च ) दैनिक जीवन में- हमारे दैनिक जीवन का प्रत्येक कार्य अब विज्ञान पर ही आधारित है । विद्युत् हमार जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग बन गई है । बिजली के पंखे, LPG गैस, स्टोव, फ्रिज आदि के निर्माण ने सुविधापूर्ण जीवन का वरदान दिया है।
इन आविष्कारों से समय, शक्ति और धन की पर्याप्त बचत हुई है । विज्ञान ने हमारे जीवन को इतना अधिक परिवर्तित कर दिया है कि यदि दो – सौ वर्ष पूर्व का कोई व्यक्ति हम देखे तो वह यही समझेगा कि हम स्वर्ग में रह रहे हैं ।
यह कहने में कोई अतिशयोक्ति न होगी कि भविष्य का विज्ञान मृत व्यक्ति को भी जीवन दे सकेगा । इसलिए विज्ञान को वरदान न कहा जाए तो और क्या कहा जाए ?
3- विज्ञान : एक अभिशाप के रूप में
एक अभिशाप के रूप में विज्ञान का एक दूसरा पहलू भी है । विज्ञान ने मनुष्य के हाथ में बहुत अधिक शक्ति दे दी है , किन्तु उसके प्रयोग पर कोई बन्धन नहीं लगाया है।
स्वार्थी मानव इस शक्ति का प्रयोग जितना रचनात्मक कार्यों के लिए कर रहा है , उससे अधिक प्रयोग विनाशकारी कार्यों के लिए भी कर रहा है । सुविधा प्रदान करने वाले उपकरणों ने मनुष्य को आलसी बना दिया है।
यन्त्रों के अत्यधिक उपयोग ने देश में बेरोजगारी को जन्म दिया है। परमाणु – अस्त्रों के परीक्षणों ने मानव को भयाक्रान्त कर दिया है।
जापान के नागासाकी और हिरोशिमा नगरों का विनाश विज्ञान की ही देन माना गया है । मनुष्य अपनी पुरानी परम्पराएँ और आस्थाएँ भूलकर भौतिकवादी होता जा रहा है ।
भौतिकता को अत्यधिक पहत्त्व देने के कारण उसमें विश्वबन्धुत्व की भावना लुप्त होती जा रही है । परमाणु तथा हाइड्रोजन बम निःसन्देह विश्व – शान्ति के लिए खतरा बन गए हैं । इनके प्रयोग से किसी भी क्षण सम्पूर्ण विश्व तथा विश्व – संस्कृति का विनाश पल भर में ही सम्भव है ।
4. विज्ञान : वरदान या अभिशाप ?
यह प्रश्न भी बहुत स्वाभाविक है कि क्या कम्प्यूटर और मानव – मस्तिष्क का तुलना की जा सकती है और इनमें कौन श्रेष्ठ है ; क्योंकि कम्प्यूटर के मस्तिष्क का निर्माण भी मानव – बुद्धि के पर ही सम्भव हुआ है ।
यह बात नितान्त सत्य है कि मानव मस्तिष्क की अपेक्षा कम्प्यूटर समस्याओं को बहुत हल कर सकता है, किन्तू वह मानवीय संवेदनाओं , अभिरुचियों , भावनाओं और चित्त से रहित मात्र एक यन्त्र – पुरुष है ।
कम्प्यूटर केवल वही काम कर सकता है । जिसके लिए उसे निर्देशित ( programmed ) किया गया हो । वह कोई निर्णय स्वयं नहीं ले सकता और न ही कोई नवीन बात सोच सकता है ।
7- उपसंहार :
विज्ञान का वास्तविक लक्ष्य है – मानव – हित और मानव – कल्याण । यदि विज्ञान अपने इस उद्देश्य की दिशा में पिछड़ जाता है तो विज्ञान को त्याग देना ही हितकर होगा ।
राष्ट्रकवि रामधारीसिंह ‘ दिनकर ‘ ने अपनी इस धारणा को इन शब्दों में व्यक्त किया है
“सावधान , मनुष्य , यदि विज्ञान है तलवार ,
तो इसे दे फेंक , तजकर मोह, स्मृति के पार।
हो चुका है सिद्ध , है तू शिशु अभी अज्ञान,
फूल – काँटों की तुझे कुछ भी नहीं पहचान।
खेल सकता तू नहीं ले हाथ में तलवार,
काट लेगा अंग, तीखी है बड़ी यह धार।
आशा है की विज्ञान एक अभिशाप से आपको बहुत कुछ सीखने को मिला होगा आप इसे शेयर जरूर करें |
अगर आपको ये लेख Vigyan Vardan Ya Abhishap Par Nibandh पसंद आये तो शेयर जरूर करें |
- परहित सरिस धर्म नहिं भाई निबंध
- दूरदर्शन ( टेलीविजन ) पर निबंध
- यदि मैं प्रधानमन्त्री होता निबंध
- गंगा नदी पर निबंध – गंगा की आत्मकथा
- भारतीय कृषि और किसान पर निबंध
- विज्ञान की उपलब्धियाँ | विज्ञान : एक वरदान
- विज्ञान : वरदान या अभिशाप
- कम्प्यूटर : आधुनिक यन्त्र – पुरुष
- मेरे सपनों का भारत पर निबंध
- पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध