UPSC Myths in Hindi सिविल सेवा परीक्षा के विषय में मिथक
UPSC की तैयारी के लिए सोचने वाले जो भी अभ्यर्थी हम सभी ने सिविल सेवा परीक्षा (सामान्य रूप में IAS के नाम से प्रचलित) की तैयारी को लेकर प्रायः कई भ्रांतियां सुनने को मिलती है (UPSC Myths in Hindi)। इनमें से कई प्रश्न इस परीक्षा की तैयारी शुरू करने वाले अभ्यर्थियों को भयभीत करते हैं तो कई अनुभवी अभ्यर्थियों को भी व्याकुल कर देते हैं, उसका परिणाम यह होता है कि कुछ अभयर्थी तैयारी शुरू करने के पहले ही हथियार डाल देते हैं।
निम्नलिखित प्रश्नों को अपने इस लेख में सम्लित करके अभ्यर्थियों को इन मिथकों से दूर रखते हुए उनका ध्यान परीक्षा पर केन्द्रित करने को प्रेरित करना है।
मिथक-1: सिविल सेवा परीक्षा देश सभी परीक्षाओं में सर्वाधिक कठिन परीक्षा है !
उत्तर: यह सर्वथा सत्य नहीं है। UPSC परीक्षा भी अन्य परीक्षाओं की ही तरह एक सामान्य परीक्षा है, अंतर केवल इनकी प्रकृति एवं प्रक्रिया में है। अगर इस परीक्षा में सफल होना है तो अभ्यर्थीयों को इस परीक्षा की प्रकृति अनुसरण करते हुए सक्षम, उचित एवं गतिशील रणनीति बनाकर तैयारी करनी होती है | इस रणनीति का अनुसरण करने से उनकी सफलता की संभावना बढ़ जाती है।यह ध्यान रखने वाली बात है की, अभ्यर्थियों की क्षमताओं और योग्यतों में अंतर हो सकता है लेकिन उचित रणनीति एवं निरंतर अभ्यास से कोई लक्ष्य मुश्किल नहीं है।
मिथक-2: कहते हैं कि सिविल सेवा परीक्षा में सफल होने के लिये प्रतिदिन 16-18 घंटे अध्ययन करना आवश्यक है !
उत्तर: सिविल सेवा परीक्षा सामान्यत: तीन चरणों (प्रारंभिक, मुख्य परीक्षा एवं साक्षात्कार) में आयोजित की जाती है, जिनमें प्रत्येक चरण की प्रक्रिया और रणनीति में अंतर होना चाहिए होती हैं। प्रायः इन चरणों के पाठ्यक्रमों में अंतर होता है, ऐसे में यह कहना कि इस परीक्षा में सफल होने के लिये प्रतिदिन 16-18 घंटे अध्ययन करना आवश्यक है, पूर्णत: सही नहीं है।
इसी भी परीक्षा में सफलता, पढ़ाई के घंटों के अलावा अन्य विन्दुओं पर भी निर्भर करती है। अभ्यर्थियों की योग्यताओं और क्षमताओं में स्वाभाविक अंतर होता है, हो सकता है किसी विषय को कोई अभ्यर्थी जल्दी समझ ले और कोई देर में, फिर भी अगर कोई अभ्यर्थी कुशल मार्गदर्शन में नियमित रूप से 8-10 घंटे पढ़ाई करता है तो उसके सफल होने की संभावना बढ़ जाती है।
मिथक-3: सिविल सेवा परीक्षा में सफलता प्राप्त करने के लिये दिल्ली में इसकी कोचिंग करनी आवश्यक है, क्या यह सत्य है?
उत्तर: यह बिल्कुल गलत है। यदि विगत वर्षों के परीक्षा परिणामों को देखें तो कई ऐसे अभ्यर्थियों के परीक्षा परिणामों को देखने से ये पता चलता है कि , जिन्होंने घर पर ही स्वाध्याय किया, सही एवं गतिशील रणनीति, गुणवत्तापूर्ण अध्ययन सामग्री, जागरूकता, निरंतर और ईमानदारीपूर्वक प्रयास किया उन्हें सफलता मिली है।
कोचिंग संस्थान चाहे जहाँ के भी हो आपका मार्गदर्शन करते हैं जिस पर अंततः आपको ही चलना होता और उसका अनुशासित रूप में पालन करना पड़ता है। वर्तमान में कई प्रतिष्ठित कोचिंग संस्थानों के नोट्स बाज़ार में उपलब्ध हैं जिनका अध्ययन किया जा सकता है।
मिथक-4: यह परीक्षा एक बड़े महासागर के समान है और इसमें प्रश्न पाठ्यक्रम से बाहर से भी पूछे जाते हैं। वे यह भी कहते हैं कि इसमें प्रश्न उन स्रोतों से पूछे जाते हैं जो सामान्यतः अभ्यर्थियों की पहुँच से बाहर होते हैं, क्या यह सत्य है?
उत्तर: यह सत्य नहीं है। UPSC अपने पाठ्यक्रम से कभी भी नहीं भटकता है | प्रायः सामान्य अध्ययन के कुछ प्रश्नपत्रों के कुछ शीर्षकों के उभयनिष्ठ (Common) होने के कारण सामान्यत: अभ्यर्थियों में यह भ्रम उत्पन्न होता है, जबकि वे किसी-न-किसी विषय के शीर्षक से संबंधित रहते हैं। अभ्यर्थियों को इस प्रकार की भ्रामक बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिये। UPSC का उद्देश्य योग्य से योग्यतम अभ्यर्थियों का चयन करना है न कि अभ्यर्थियों से अनावश्यक प्रश्न पूछकर उन्हें हतोत्शहित करना।
मिथक -5: लाखों अभ्यर्थी इस परीक्षा में भाग लेते हैं जबकि कुछ मेधावी अभ्यर्थी ही आईएएस बनते हैं। इस प्रश्न को लेकर मेरे मन में भय उत्पन्न हो रहा है, कृपया उचित मार्गदर्शन करें ?
उत्तर: इस प्रकार की बातों से अभ्यर्थियों भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है, हाँ ये सही है कि इस परीक्षा में लाखों अभ्यर्थी आवेदन करते हैं और इस परीक्षा में सम्मिलित होते हैं, किन्तु अगर देखा जाए तो वास्तविक प्रतिस्पर्द्धा केवल 8-10 हज़ार इस परीक्षा के लिए गंभीर अभ्यर्थियों के बीच ही होती है।
ये वे अभ्यर्थी होते हैं जो व्यवस्थित ढंग से और निरंतर अध्ययन करते हैं और इस परीक्षा में सफल के झंडे गाड़ते हैं। आप भी इसके सिद्धांतों का पालन करके उन सभी में से एक हो सकते हैं। आपको इस दौड़ में शामिल होना चाहिये तथा इसे जीतने के लिये कड़ी मेहनत करनी चाहिये। याद रखें:
मिथक -6: कुछ लोग कहते हैं कि इस परीक्षा को पास करने के लिये भाग्य की ज़रूरत है, क्या यह सत्य है ?
उत्तर: यदि आप भाग्यवादी हैं तो यकीन मानिये ये परीक्षा आपके लिए नहीं है, स्पष्ट रूप से इस बात को समझ लें कि इस परीक्षा को पास करने में भाग्य का योगदान मात्र 1% हो सकता है, लेकिन आपके परिश्रम का 99% है। यदि आप अपने भाग्य के भरोसे आप अपने हाथों से सफलता के 99% अंश को न गवाएँ तो शायद ये उचित नहीं होगा। भाग्य भी ईमानदारी से परिश्रम करने वालों का ही साथ देता है। ध्यान रहे, ‘ईश्वर उन्हीं की सहायता करता है जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं’।
मिथक -7: वैकल्पिक विषयों का चयन ! कुछ लोगों का मानना है कि ऐसे विषय का चयन करना चाहिये जिसका पाठ्यक्रम अन्य विषयों की तुलना में छोटा हो और जो सामान्य अध्ययन में भी मदद करता हो, क्या यह सत्य है ?
उत्तर: सही वैकल्पिक विषय का चयन ही वह महत्वपूर्ण निर्णय है जिस पर किसी उम्मीदवार की सफलता में निर्णायक भूमिका अदा करता है। वैकल्पिक विषय चयन का असली आधार सिर्फ यही है कि वह विषय आपके माध्यम में कितना ‘Scoring’ है?
विषय छोटा है या बड़ा, वह सामान्य अध्ययन में मदद करता है या नहीं, ये सभी आधार किसी भी विषय के चयन का आधार नहीं होना चाहिए हैं। मानलीजिए विषय छोटा भी है और सामान्य अध्ययन में मदद भी करता है किंतु अन्य विषय की तुलना में 50 अंक कम दिलवाता हो तो उसे चुनना निश्चित रूप से गलत है। आपको ये नहीं भूलना है कि, आपका चयन अंततः आपके अंकों से ही होना है, इधर-उधर के तर्कों से नहीं। इस संबंध में विस्तार से समझने के लिये “’कैसे करें वैकल्पिक विषय का चयन’” शीर्षक को पढ़ें|
मिथक-8: वैकल्पिक विषयों के चयन में माध्यम का क्या प्रभाव पड़ता है? कुछ लोगों का मानना है कि हिंदी माध्यम की तुलना में अंग्रेज़ी माध्यम के अभ्यर्थी ज़्यादा अंक प्राप्त करते हैं, क्या यह सत्य है?
उत्तर: यह मिथक भी पूर्णत: सत्य नहीं है। किसी भी विषय में सर्वोत्तम अंक प्राप्त करना उम्मीदवार की उस विषय में रुचि, उसकी वृहद् समझ, गुणवत्तापूर्ण पाठ्य सामग्री की उपलब्धता, अच्छी लेखन शैली एवं समय प्रबंधन इत्यादि पर निर्भर करता है। UPSC में अभ्यर्थी को उसी विषय का चयन वैकल्पिक विषय के रूप में करना चाहिये जिसमें वह सहज हो।
ध्यान हिंदी माध्यम के अभ्यर्थी उन्हीं विषयों या प्रश्नपत्रों में अच्छे अंक (यानी अंग्रेज़ी माध्यम के गंभीर उम्मीदवारों के बराबर या उनसे अधिक अंक) प्राप्त कर सकते हैं जिनमें तकनीकी शब्दावली का प्रयोग कम या नहीं के बराबर होता हो, अद्यतन जानकारियों की अधिक अपेक्षा न रहती हो और जिन विषयों पर पुस्तकें और परीक्षक हिंदी में सहजता से उपलब्ध हों।
मिथक-9: कुछ लोग कहते हैं कि आईएएस की नियुक्ति में भ्रष्टाचार होता है, क्या यह सत्य है ?
उत्तर: सिविल सेवा परीक्षा की पूरी प्रक्रिया इतनी निष्पक्ष है कि आप इस पर आँख बंद करके विश्वास कर सकते हैं। परीक्षा के संचालन के तरीके में कमी या अव्यवस्था हो सकती है लेकिन सिविल सेवा अधिकारियों की नियुक्ति में भ्रष्टाचार नहीं होता है। इनकी नियुक्तियाँ निष्पक्ष होती हैं। आप इस पर विश्वास कर सकते हैं।
मिथक-10: सिविल सेवा परीक्षा के सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को पढ़ने के लिए 3-4 वर्ष का समय लगता है ?
उत्तर: ये सही है कि UPSC का पढ़यक्रम वृहद् होता है, लेकिन अभ्यर्थी द्वारा नियमित रूप से 8-10 घंटे के अध्यन से इसे 1 वर्ष में ही पूरा किया जा सकता है, इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लये निरंतर और सतत रूप से अपने विषयों का अध्ययन करते रहना पड़ेगा |
मिथक-10: IAS भारत में सबसे अच्छी नौकरी है |
यह एक अच्छी तरह से स्थापित धारणा है कि आईएएस भारत में किसी भी अन्य नौकरी की तुलना में सबसे अच्छा काम है। लेकिन वास्तव में, ऐसा नहीं है। वेतन और भत्तों के संदर्भ में, यह सबसे अच्छा काम नहीं है और निजी क्षेत्र में आईएएस अधिकारी की तुलना में बेहतर वेतन और भत्ते वाले विभिन्न पद हैं। इसके अलावा, IAS को ग्रामीण क्षेत्रों में और कुछ समय सूखे की आशंका वाले क्षेत्रों में उनकी पोस्टिंग मिलती है जहाँ कोई सुविधाएं नहीं हैं। लेकिन निजी क्षेत्र की नौकरी के मामले में, किसी को हमेशा महानगरीय के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय असाइनमेंट पर भी अपनी पोस्टिंग मिलेगी। इसके अलावा, IAS पहला व्यक्ति है जो किसी भी दुर्व्यवहार और राजनीतिक नेतृत्व परिवर्तन के मामले में स्थानांतरित किया जाता है, जो एक IAS अधिकारी के लिए निवास स्थान के संदर्भ में बहुत अनिश्चित भविष्य बनाता है।
मिथक-11 अपने अकादमी में Toppers ही UPSC में सफलता पाते हैं |
यह भी एक बहुत ही सामान्य मिथक है कि किसी को अपने अकादमी में अव्वल रहने की आवश्यकता है क्योंकि विभिन्न टॉपर हैं जो अपने शिक्षाविदों के दौरान एक औसत छात्र थे। हमारे पास उसी के लिए विभिन्न उदाहरण हैं, यहां तक कि एक आईएएस टॉपर्स भी नौवीं क्लास में फेल थे। इसलिए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसी का गौरवशाली और सफल शिक्षाशास्त्र था। इस परीक्षा में इस परीक्षा के अंकों की आवश्यकता होती है, इसलिए डिग्री परीक्षा में न्यूनतम प्रतिशत की आवश्यकता नहीं होती है।