
हिन्दी मे अलंकार : भेद, प्रकार, उदाहरण
Hindi Mein Alankar
हिन्दी मे अलंकार : भेद, प्रकार, उदाहरण
किसी भी काव्य मे अलंकार आभूषण की तरह होता है | काव्य की शोभा बढ़ानेवाले तत्त्वों को ‘ अलंकार ‘ कहते हैं । हिन्दी काव्य सौंदर्य के तीन तत्व होते हैं, रस, छंद और अलंकार (ras chand alankar) और अलंकार हिन्दी भाषा की कविता का धर्म है |
काव्य को सुन्दरतम बनाने के लिए अनेक उपकरणों की आवश्यकता पड़ती है । इन उपकरणों में एक अलंकार भी है |
जिस प्रकार मानव अपने शरीर को अलंकृत करने के लिए विभिन्न वस्त्राभूषणादि को धारण करके समाज में गौरवान्वित होता है , उसी प्रकार कवि भी कवितारूपी नारी को अलंकारों से अलंकृत करके गौरव प्राप्त करता है ।
आचार्य दण्डी ने कहा भी है – ” काव्यशोभाकान धर्मान अलङ्कारान् प्रचक्षते । “
अर्थात् काव्य के शोभाकार धर्म , अलंकार होते हैं । अलंकारों के बिना कवितारूपी नारी विधवा – सी लगती है ।
अलंकारों के महत्त्व का कारण यह भी है कि इनके आधार पर भावाभिव्यक्ति में सहायता मिलती है तथा काव्य रोचक और प्रभावशाली बनता है । इससे अर्थ में भी चमत्कार पैदा होता है तथा अर्थ को समझना सुगम हो जाता है ।
अलंकार के भेद (Alankar ke Bhed)
प्रधान रूप से अलंकार के दो भेद माने जाते हैं –
- शब्दालंकार
- अर्थालंकार
इन दोनों भेदों का संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है ।
( अ ) शब्दालंकार –
“ जब कुछ विशेष शब्दों के कारण काव्य में चमत्कार उत्पन्न होता है तो वह ‘ शब्दालंकार ‘ कहलाता है । “
यदि इन शब्दों के स्थान पर उनके ही अर्थ को व्यक्त करनेवाला कोई दूसरा शब्द रख दिया जाए तो वह चमत्कार समाप्त हो जाता है ।
उदाहरणार्थ –
कनक कनक ते सौ गुनी , मादकता अधिकाय ।
वा खाए बौराय जग , या पाए ही बौराय ॥ – बिहारी
यहाँ ‘ कनक ‘ शब्द के कारण जो चमत्कार है , वह पर्यायवाची शब्द रखते ही समाप्त हो जाएगा ।
( ब ) अर्थालंकार –
“ जहाँ काव्य में अर्थगत चमत्कार होता है , वहाँ ‘ अर्थालंकार ‘ माना जाता है । “
इस अलंकार पर आधारित शब्दों के स्थान पर उनका कोई पर्यायवाची रख देने से भी अर्थगत सौन्दर्य में कोई अन्तर नहीं पड़ता ।
उदाहरणार्थ –
चरण – कमल बन्दौं हरिराई ।
यहाँ पर ‘ कमल ‘ के स्थान पर ‘ जलज ‘ रखने पर भी अर्थगत सौन्दर्य में कोई अन्तर नहीं पड़ेगा ।
( अ ) शब्दालंकार
( 1 ) अनुप्रास अलंकार
अनुप्रास अलंकार की परिभाषा – वर्णों की आवृत्ति को ‘ अनुप्रास ‘ कहते हैं :
अर्थात ” जहाँ समान वर्गों की बार – बार आवृत्ति होती है वहाँ ‘ अनुप्रास ‘ अलंकार होता है । ‘ ‘
अनुप्रास अलंकार का उदाहरण –
- तरनि – तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए ।
- रघुपति राघव राजा राम ।
स्पष्टीकरण – उपर्युक्त उदाहरणों के अन्तर्गत प्रथम में ‘ त ‘ तथा द्वितीय में ‘ र ‘ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है । –
अनुप्रास अलंकार के भेद – अनुप्रास के पाँच प्रकार हैं –
- छेकानुप्रास
- वृत्यनुप्रास
- श्रुत्यनुप्रास
- लाटानुप्रास
- अन्त्यानुप्रास ।
इन भेदों का संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है-
( 1 ) छेकानुप्रास – जब एक या अनेक वर्णों की आवृत्ति एक बार होती है , तब ‘ छेकानुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण –
- कहत कत परदेसी की बात ।
- पीरी परी देह , छीनी राजत सनेह भीनी ।
स्पष्टीकरण – उपर्युक्त उदाहरणों में , प्रथम में ‘ क ‘ वर्ण की तथा द्वितीय में ‘ प ‘ वर्ण की आवृत्ति एक बार हुई है , अत : यहाँ ‘ छेकानुप्रास ‘ अलंकार है ।
( 2 ) वृत्यनुप्रास – जहाँ एक वर्ण की अनेक बार आवृत्ति हो , वहाँ ‘ वृत्यनुप्रास ‘ अलंकार होता है ।
उदाहरण –
- तरनि – तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।
- रघुपति राघव राजा राम।
- कारी कूर कोकिल कहाँ का बैर काढ़ति री।
स्पष्टीकरण – उपर्युक्त उदाहरणों में , प्रथम में ‘ त ‘ वर्ण की , द्वितीय में ‘ र ‘ वर्ण की तथा तृतीय उदाहरण में ‘ क ‘ वर्ण की अनेक बार आवृत्ति हुई है ;
अतः यहाँ ‘ वृत्यनुप्रास ‘ अलंकार है ।
( 3 ) श्रुत्यनुप्रास – जब कण्ठ , तालु , दन्त आदि किसी एक ही स्थान से उच्चरित होनेवाले वर्गों की आवृत्ति होती है , तब वहाँ ‘ श्रुत्यनुप्रास ‘ अलंकार होता है ।
उदाहरण –
तुलसीदास सीदत निसिदिन देखत तुम्हारि निठुराई ।
स्पष्टीकरण – उपर्युक्त उदाहरण में दन्त्य वर्णों त , द , कण्ठ वर्ण र तथा तालु वर्ण न की आवृत्ति हुई है ।
अतः यहाँ ‘ श्रुत्यनुप्रास ‘ अलंकार है ।
( 4 ) लाटानुप्रास – जहाँ शब्द और अर्थ की आवृत्ति हो ; अर्थात् जहाँ एकार्थक शब्दों की आवत्ति तो हो परन्तु अन्वय करने पर अर्थ भिन्न हो जाए ; वहाँ ‘ लाटानुप्रास ‘ अलंकार होता है ।
उदाहरण –
पूत सूपत तो क्यों धन संचै ?
पूत कपूत तो क्यों धन संचै ?
स्पष्टीकरण- जहां एक से अधिक अर्थ वाले शब्दों की आवृत्ति हो रही है किंतु, अन्वय के कारण अर्थ बदल रहा है,
जैसे पुत्र यदि सपूत हो तो धन संचय की कोई आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि वह स्वयं ही कमा लेगा और यदि पुत्र कपूत है, तो भी धन संचय की आवश्यकता नहीं क्योंकि वह सारे धन को नष्ट कर देगा
( 5 ) अन्त्यानुप्रास – जब छन्द के शब्दों के अन्त में समान स्वर या व्यंजन की आवृत्ति हो , वहाँ ‘ अन्त्यानुप्रास अलंकार होता है ।
उदाहरण :
कहत नटत रीझत खिझत , मिलत खिलत लजियात ।
भरे भौन में करतु हैं , नैननु ही सौं बात ॥
स्पष्टीकरण – उपर्युक्त उदाहरण में , छन्द के शब्दों के अन्त में ‘ त ‘ व्यंजन की आवृत्ति हुई है , अतः यहाँ ‘ अन्त्यानुप्रास ‘ अलंकार है । ‘
( 2 ) यमक अलंकार ( Yamk Alankar )
यमक अलंकार की परिभाषा – ‘ यमक ‘ का अर्थ है – ‘ युग्म ‘ या ‘ जोड़ा ‘ । इस प्रकार “ जहाँ एक शब्द अथवा शब्द – समूह का – एक से अधिक बार प्रयोग हो , किन्तु उसका अर्थ प्रत्येक बार भिन्न हो , वहाँ ‘ यमक ‘ अलंकार होता है । ”
उदाहरण –
ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहनवारी ,
ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहाती हैं ।
स्पष्टीकरण – उपर्युक्त उदाहरण में ‘ ऊँचे घोर मंदर ‘ के दो भिन्न – भिन्न अर्थ हैं – ‘ महल ‘ और ‘ पर्वत कन्दराएँ ‘
अत : यहाँ ‘ यमक ‘ अलंकार है ।
( 3 ) श्लेष अलंकार
श्लेष अलंकार की परिभाषा – जिस शब्द के एक से अधिक अर्थ होते हैं, उसे ‘ श्लिष्ट ‘ कहते हैं । इस प्रकार “ जहाँ किसी शब्द के एक बार प्रयुक्त होने पर एक से अधिक अर्थ होते हों, वहाँ ‘ श्लेष अलंकार’ होता है । ”
उदाहरण:
रहिमन पानी राखिए , बिन पानी सब सून ।
पानी गए न ऊबरे , मोती मानुष चून ॥
स्पष्टीकरण – उपर्युक्त उदाहरण में तीसरी बार प्रयुक्त ‘ पानी ‘ शब्द श्लिष्ट है और यहाँ इसके तीन अर्थ हैं – चमक ( मोती के पक्ष में ) , प्रतिष्ठा ( मनुष्य के पक्ष में ) तथा जल ( आटे के पक्ष में ) ;
अत : यहाँ ‘ श्लेष ‘ अलंकार है । ‘ |
( ब ) अर्थालंकार |
( 4 ) उपमा अलंकार
उपमा अलंकार की परिभाषा – ‘ उपमा ‘ का अर्थ है – सादृश्य , समानता तथा तुल्यता । “ जहाँ पर उपमेय की उपमान से किसी समान धर्म के आधार पर समानता या तुलना की जाए , वहाँ ‘ उपमा अलंकार होता है ।
उपमा अलंकार के अंग – उपमा अलंकार के चार अंग हैं-
- उपमेय – जिसकी उपमा दी जाए ।
- उपमान – जिससे उपमा दी जाए ।
- समान ( साधारण ) धर्म – उपमेय और उपमान दोनों से समानता रखनेवाले धर्म ।
- वाचक शब्द – उपमेय और उपमान की समानता प्रदर्शित करनेवाला सादृश्यवाचक शब्द ।
उदाहरण –
मुख मयंक सम मंजु मनोहर ।
स्पष्टीकरण – उपर्युक्त उदाहरण में ‘ मुख ‘ उपमेय , ‘ मयंक ‘ उपमान , ‘ मंजु और मनोहर ‘ साधारण धर्म तथा ‘ सम ‘ वाचक शब्द है ;
अत : यहाँ ‘ उपमा ‘ अलंकार का पूर्ण परिपाक हुआ है ।
उपमा अलंकार के भेद – उपमा अलंकार के प्रायः चार भेद किए जाते हैं —
- पूर्णोपमा
- लुप्तोपमा
- रसनोपमा
- मालोपमा ।
उपमा अलंकार के भेदों का संक्षिप्त विवेचन निम्नलिखित है-
( क ) पूर्णोपमा – पूर्णोपमा अलंकार में उपमा के चारों अंग उपमान , उपमेय , साधारण धर्म और वाचक शब्द स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट होते हैं ।
उदाहरण – पीपर पात सरिस मन डोला ।
स्पष्टीकरण – उपर्युक्त उदाहरण में उपमा के चारों अंग उपमान ( पीपर पात ) , उपमेय ( मन ) , साधारण धर्म ( डोला ) तथा वाचक शब्द ( सम ) स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट हैं ; अत : यहाँ ‘ पूर्णोपमा ‘ अलंकार है ।
( ख ) लुप्तोपमा – “ उपमेय , उपमान , साधारण धर्म तथा वाचक शब्द में से किसी एक या अनेक अंगों के लुप्त होने पर ‘ लुप्तोपमा ‘ अलंकार होता है । ” लुप्तोपमा अलंकार में उपमा के तीन अंगों तक के लोप की कल्पना की गई है ।
उदाहरण – नील सरोरुह स्याम तरुन अरुन बारिज नयन ।
स्पष्टीकरण – उपर्युक्त उदाहरण में ‘ नयन ‘ उपमेय , “ सरोरुह और बारिज ‘ उपमान तथा ‘ नील और अरुण ‘ साधारण धर्म हैं । ‘ समान ‘ आदिवाचक शब्द का लोप हुआ है ; अतः यहाँ ‘ लुप्तोपमा ‘ अलंकार है ।
( ग ) रसनोपमा – जिस प्रकार एक कडी दसरी कड़ी से क्रमश : जडी रहती है , उसी प्रकार “ रसनोपमा अलंकार में उपमेय – उपमान एक – दूसरे से जुड़े रहते हैं । ”
उदाहरण – सगुन ज्ञान सम उद्यम , उद्यम सम फल जान । . फल समान पुनि दान है , दान सरिस सनमान ॥
स्पष्टीकरण – उपर्युक्त उदाहरण में ‘ उद्यम ‘ , ‘ फल ‘ . ‘ दान ‘ और ‘ सनमान ‘ उपमेय अपने उपमानों के साथ श्रृंखलाबद्ध रूप में प्रस्तुत किए गए हैं ; अतः यहाँ ‘ रसनोपमा ‘ अलंकार है ।
( घ ) मालोपमा – मालोपमा का तात्पर्य है – माला के रूप में उपमानों की श्रृंखला । “ एक ही उपमेय के लिए जब अनेक उपमानों का गुम्फन किया जाता है , तब ‘ मालोपमा ‘ अलंकार होता है । ”
उदाहरण – पछतावे की परछाँही – सी , तुम उदास छाई हो कौन ? दुर्बलता की अंगड़ाई – सी , अपराधी – सी भय से मौन ।
स्पष्टीकरण – उपर्युक्त उदाहरण में एक उपमेय के लिए अनेक उपमान प्रस्तुत किए गए हैं ; अत : यहाँ ‘ मालोपमा ‘ अलंकार है । ‘
( 5 ) रूपक अलंकार
परिभाषा – ” जहां उपमेय में उपमान का भेदरहित आरोप हो वहाँ रूपक अलंकार होता है । रूपक अलंकार में उपमेय और उपमान में कोई भेद नहीं रहता । ।
रूपक अलंकार का उदाहरण-
ओ चिंता की पहली रेखा ,
अरे विश्व – वन की व्याली ।
ज्वालामुखी स्फोट के भीषण ,
प्रथम कम्प – सी मतवाली ।
स्पष्टीकरण – उपयुक्त उदाहरण में चिन्ता उपमेय में विश्व – वन की व्याली आदि उपमानो का आरोप किया गया है, अत : यहाँ ‘ रूपक ‘ अलंकार है ।
रूपक के भेद – आचार्यों ने रूपक के अनगिनत भेट – उपभेद किए हैं : किन्तु इसके तीन प्रधान भेद इस प्रकार हैं –
- सांगरूपक
- निरंग रूपक
- परम्परित रूपक ।
इनका संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है
( 1 ) सांगरूपक – जहाँ अवयवोंसहित उपमान का आरोप होता है , वहाँ ‘ सांगरूपक अलंकार होता है ।
उदाहरण –
रनित भुंग – घंटावली , झरति दान मधु – नीर ।
मंद – मंद आवत चल्यौ , कुंजर कुंज – समीर ॥
स्पष्टीकरण – उपर्युक्त उदाहरण में समीर में हाथी का , भंग में घण्टे का और मकरन्द में दान ( मद – जल ) का आरोप किया गया है । इस प्रकार वायु के अवयवों पर हाथी का आरोप होने के कारण यहाँ ‘ सांगरूपक ‘ अलंकार है |
( ख ) निरंग रूपक – जहाँ अवयवों से रहित केवल उपमेय पर उपमान का अभेद आरोप होता है , वहाँ ‘ निरंग रूपक अलंकार होता है । ।
उदाहरण –
इस हृदय – कमल का घिरना , अलि – अलकों की उलझन में ।
आँसू मरन्द का गिरना , मिलना निःश्वास पवन में ।
स्पष्टीकरण – उपर्युक्त उदाहरण में हृदय ( उपमेय ) पर कमल ( उपमान ) का अलकों ( उपमेय ) पर अलि ( उपमान ) का : आँसू ( उपमेय ) पर मरन्द ( उपमान ) का तथा नि : श्वास ( उपमेय ) पर पवन ( उपमान ) का आरोप किया गया है ; अतः यहाँ ‘ निरंग रूपक ‘ अलंकार है ।
( ग ) परम्परित रूपक – जहाँ उपमेय पर एक आरोप दूसरे आरोप का कारण होता है , वहाँ ‘ परम्परित रूपक ‘ अलंकार है ।
उदाहरण-
बाडव – ज्वाला सोती थी , इस प्रणय – सिन्धु के तल में ।
प्यासी मछली – सी आँखें , थीं विकल रूप के जल में ।
स्पष्टीकरण – उपर्युक्त उदाहरण में आँखों ( उपमेय ) पर मछली ( उपमान ) का आरोप , रूप ( उपमेय ) पर न ) के आरोप के कारण किया गया है : अत : यहाँ ‘ परम्परित रूपक ‘ अलंकार है । ‘
रूपक के अन्य से उदाहरण –
- सेज नागिनी फिरि फिरि डसी । ।
- बिरह क आगि कठिन अति मन्दी ।
- कमल – नैन को छाँड़ि महातम , और देव को ध्यावै ।
- आपुन पौढ़ि अधर सज्जा पर , कर – पल्लव पलुटावति ।
- बिधि कुलाल कीन्हे काँचे घट । । ।
- महिमा मृगी कौन सुकृती की खल – बच बिसिखन बाँची ?
( 6 ) उत्प्रेक्षा अलंकार
परिभाषा – “ जहाँ उपमेय में उपमान की सम्भावना की जाती है , वहाँ ‘ उत्प्रेक्षा ‘ अलंकार होता है । ”
उत्प्रेक्षा को व्यक्त करने के लिए प्रायः मनु , मनहँ , मानो , जानेह . जानो आदि वाचक शब्दों का प्रयोग किया जाता है ।
उत्प्रेक्षा अलनकर का उदाहरण-
सोहत ओढ़े पीतु पटु , स्याम सलोने गात ।
मनौ नीलमनि – सैल पर , आतपु पर्यो प्रभात ॥
स्पष्टीकरण – उपर्युक्त उदाहरण में श्रीकृष्ण के श्याम शरीर ( उपमेय ) पर नीलमणियों के पर्वत ( उपमान ) की तथा पीत – पट ( उपमेय ) पर प्रभात की धूप ( उपमान ) की सम्भावना की गई है ; अत : यहाँ ‘ उत्प्रेक्षा ‘ अलंकार है ।
उत्प्रेक्षा के भेद – उत्प्रेक्षा के तीन प्रधान भेद हैं –
- वस्तूत्प्रेक्षा ,
- हेतृत्प्रेक्षा ,
- फलोत्प्रेक्षा ।
इनका संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है –
( क ) वस्तूत्प्रेक्षा – वस्तूत्प्रेक्षा में एक वस्तु की दूसरी वस्तु के रूप में सम्भावना की जाती है ।
( संकेत – उत्प्रेक्षा के प्रसंग में दिया गया उपर्युक्त उदाहरण वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार पर ही आधारित है । )
( ख ) हेतूत्प्रेक्षा – जहाँ अहेतु में हेतु मानकर सम्भावना की जाती है , वहाँ ‘ हेतृत्प्रेक्षा ‘ अलंकार होता है ।
उदाहरण –
मानहुँ बिधि तन – अच्छ छबि , स्वच्छ राखिबै काज ।
दृग – पग पौंछन कौं करे , भूषन पायन्दाज ।
स्पष्टीकरण – उपर्युक्त उदाहरण में हेतु ‘ आभूषण ‘ न होने पर भी उसकी पायदान के रूप में उत्प्रेक्षा की गई है , अतः यहाँ ‘ हेतृत्प्रेक्षा ‘ अलंकार है ।
( ग ) फलोत्प्रेक्षा – जहाँ अफल में फल की सम्भावना का वर्णन हो , वहाँ ‘ फलोत्प्रेक्षा ‘ अलंकार होता है ।
उदाहरण –
पुहुप सुगन्ध करहिं एहि आसा ।
मकु हिरकाइ लेइ हम्ह पासा । ।
स्पष्टीकरण – पुष्पों में स्वाभाविक रूप से सुगन्ध होती है , परन्तु यहाँ जायसी ने पुष्पों की सुगन्ध विकीर्ण होने का ‘ फल ‘ बताया है । कवि का तात्पर्य यह है कि पुष्प इसलिए सुगन्ध विकीर्ण करते हैं कि सम्भवतः पदमावती उन्हें अपनी नासिका से लगा ले ।
इस प्रकार उपर्युक्त उदाहरण में अफल में फल की सम्भावना की गई है ; अतः यहाँ ‘ फलोत्प्रेक्षा ‘ अलंकार है ।
( 7 ) प्रतीप अलंकार
परिभाषा – ‘ प्रतीप ‘ शब्द का अर्थ है ‘ विपरीत ‘ । इस अलंकार में उपमा अलंकार से विपरीत स्थिति होती है ; अर्थात् “ जहाँ उपमान का अपकर्ष वर्णित हो , वहाँ ‘ प्रतीप ‘ अलंकार होता है । ” प्रसिद्ध उपमान को उपमेय रूप में कल्पित किया जा सकता है ।
उदाहरण –
देत मुकुति सुन्दर हरषि , सुनि परताप उदार ।
है तेरी तरवार – सी , कालिंदी की धार ॥
स्पष्टीकरण – प्राय : तलवार की धार की तुलना नदी की तेज धार से की जाती है ; किन्तु यहाँ कालिन्दी की धार ( उपमान ) को तलवार की धार ( उपमेय ) के समान बताया गया है ; अत : उपर्युक्त उदाहरण में प्रसिद्ध उपमान का अपकर्ष होने के कारण ‘ प्रतीप ‘ अलंकार है ।
( 8 ) भ्रान्तिमान् अलंकार
परिभाषा – जहाँ समानता के कारण एक वस्तु में किसी दूसरी वस्तु का भ्रम हो , वहाँ ‘ भ्रान्तिमान् ‘ अलंकार होता है ।
उदाहरण –
( क )
पांय महावर देन को , नाइन बैठी आय ।
फिरि – फिरि जानि महावरी , एड़ी मीडति जाय ॥
( ख )
नाक का मोती अधर की कान्ति से ,
बीज दाडिम का समझकर भ्रान्ति से ।
देख उसको ही हुआ शुक मौन है ,
सोचता है अन्य शुक यह कौन है ?
स्पष्टीकरण – उपर्युक्त प्रथम उदाहरण में लाल एडी ( उपमेय ) और महावर ( उपमान ) में लाल रंग की समानता के कारण नाइन को भ्रम उत्पन्न हो गया है
तथा द्वितीय उदाहरण में तोता उर्मिला को नाक के मोती को भ्रमवश अनार का दाना और उसकी नाक को दसरा तोता समझकर भ्रमित हो जाता है ; अतः यहाँ ‘ भ्रान्तिमान् अलंकार है ।
( 9 ) सन्देह अलंकार
परिभाषा – जहाँ एक वस्तु के सम्बन्ध में अनेक वस्तुओं का सन्देह हो और समानता के कारण अनिश्चय की मनोदशा बनी रहे , वहाँ ‘ सन्देह ‘ अलंकार होता है ।
उदाहरण-
कैधौं ब्योमबीथिका भरे हैं भूरि धूमकेतु ,
बीर – रस बीर तरवारि सी उधारी है ।
तुलसी सुरेस चाप , कैंधौं दामिनी कलाप ,
कैंधों चली मेरु तें कृसानु – सरि भारी है ।
स्पष्टीकरण – उपर्युक्त उदाहरण में लंका – दहन के वर्णन में हनुमानजी की जलती पूँछ को देखकर लंकावासियों को यह निश्चित ज्ञान नहीं हो पाता कि
यह हनुमान की जलती हुई पूँछ है या आकाश – मार्ग में अनेक पुच्छल तारे भरे हैं, अथवा वीर रसरूपी वीर ने तलवार निकली है, या यह इन्द्रधनुष है अथवा यह बिजली की तड़क है , या यह सुमेरु पर्वत से अग्नि की सरिता बह चली है ; अत : यहाँ ‘ सन्देह ‘ अलंकार है ।
( 10 ) दृष्टान्त अलंकार
परिभाषा – “ जहाँ उपमेय , उपमान के साधारण धर्म में भिन्नता होते जहा उपमय , उपमान के साधारण धर्म में भिन्नता होते हए भी बिम्ब – प्रतिबिम्ब भाव से कथन किया जाए , वहाँ ‘ दृष्टान्त ‘ अलंकार होता है । ” इसमें प्रथम पंक्ति का प्रतिबिम्ब द्वितीय पंक्ति में झलकता है ।
उदाहरण –
दुसह दुराज प्रजान को, क्यों न बढ़े दुःख – द्वंद ।
अधिक अँधेरो जग करत , मिलि मावस रवि – चंद ॥
स्पष्टीकरण – उपर्युक्त उदाहरण में प्रथम पंक्ति उपमेय वाक्य है तथा दूसरी पंक्ति उपमान वाक्य है ; अर्थात् प्रथम पंक्ति का प्रतिबिम्ब द्वितीय पंक्ति में झलकता है । अतः यहाँ ‘ दृष्टान्त ‘ अलंकार है ।
( 11 ) अतिशयोक्ति अलंकार
परिभाषा – जहाँ किसी वस्तु , घटना अथवा परिस्थिति की वास्तविकता का बढ़ा – चढ़ाकर वर्णन किया जाता है , वहाँ ‘ अतिशयोक्ति ‘ अलंकार होता है ।
उदाहरण –
छाले परिबे कैं डरनु , सकै न हाथ छुबाइ ।
झझकत हिमैं गुलाब कैं , हवा झैवैयत पाइ ॥
स्पष्टीकरण – उपर्युक्त उदहारण में नायिका के पाँवों की सुकुमारता का बहुत बढ़ा – चढ़ाकर वर्णन किया गया है , अत : यहाँ ‘ अतिशयोक्ति अलंकार है ।
( 12 ) अनन्वय अलंकार
परिभाषा – जहाँ उपमान के अभाव के कारण उपमेय ही उपमान का स्थान ले लेता है , वहाँ ‘ अनन्वय ‘ अलंकार होता है ।
उदाहरण-
राम – से राम , सिया – सी सिया , सिरमौर बिरंचि बिचारि सँवारे ।
स्पष्टीकरण – उपर्युक्त उदाहरण में राम और सीता ही उपमान हैं तथा राम और सीता ही उपमेय ; अत : यहाँ ‘ अनन्वय ‘ अलंकार है । |
प्रमुख अलंकार – युग्मों में अन्तर
( 1 ) यमक और श्लेष अलंकार मे अंतर
- ‘ यमक ‘ में एक शब्द एक से अधिक बार प्रयुक्त होता है और प्रत्येक स्थान पर उसका अलग अर्थ होता है ;
जैसे- नगन जड़ाती थीं वे नगन जड़ाती हैं ।
( यहाँ दोनों स्थान पर ‘ नगन ‘ शब्द के अलग – अलग अर्थ हैं – नग ( रत्न ) और नग्न । )
- किन्तु ‘ श्लेष ‘ में एक शब्द के एक बार प्रयुक्त होने पर भी अनेक अर्थ होते हैं ;
जैसे को घटि ये वृषभानुजा वे हलधर के वीर
यहाँ वृषभानुजा के अर्थ हैं – वृषभानु + जा अर्थात् वृषभानु की पुत्री राधा तथा वृषभ + अनुजा अर्थात् वृषभ की बहन गाय । हलधर के अर्थ है – हल को धारण करनेवाला बलराम तथा बैल ।
( 2 ) उपमा और उत्प्रेक्षा मे अंतर
- ‘ उपमा ‘ में उपमेय की उपमान से समानता बताई जाती है ;
जैसे – पीपर पात सरिस मन डोला
यहाँ मन की तुलना पीपल के पत्ते से की गई है ।
- किन्तु ‘ उत्प्रेक्षा ‘ में उपमेय में उपमान की सम्भावना प्रकट की जाती है ।
जैसे सोहत ओढे पीतु पटु , स्याम सलोने गात । मनौ नीलमनि – सैल पर , आतपु पर्यो प्रभात ।
यहाँ पर ‘ पीतु पटु ‘ में प्रभात की धूप की तथा श्रीकृष्ण के सलोने शरीर में नीलमणि के पर्वत की सम्भावना की गई है ।
( 3 ) उपमा और रूपक अलंकार मे अंतर
- ‘ उपमा ‘ में उपमेय की उपमान से समानता बताई जाती है ;
जैसे पीपर पात सरिस मन डोला ।
यहाँ मन की तुलना पीपल के पत्ते से की गई है ।
- किन्तु ‘ रूपक ‘ में उपमेय में उपमान का भेदरहित आरोप किया जाता है ।
जैसे चरन – कमल बंदी हरिराई ।
यहाँ पर चरणों पर कमल का भेदरहित आरोप किया गया है ।
( 4 ) सन्देह और भ्रान्तिमान अलंकार मे अंतर
- ‘ सन्देह ‘ में उपमेय में उपमान का सन्देह रहता है
जैसे – रस्सी है या साँप ।
- किन्तु ‘ भ्रान्तिमान् ‘ में उपमेय का ज्ञान नहीं रहता और भ्रमवश एक को दूसरा समझ लिया जाता है ।
जैसे रस्सी नहीं , साँप है । इसके अतिरिक्त ‘ सन्देह ‘ में निरन्तर सन्देह बना रहता है और निश्चय नहीं हो पाता . किन्तु ‘ भ्रान्तिमान ‘ में भ्रम निश्चय में बदल जाता है ।
अंतिम शब्द –
इस पुरे लेख मे हमने विस्तृत रूप से हिन्दी में अलंकार (hindi mein alankar ) किसे कहते हैं, अलंकार के भेद कितने होते हैं, अलंकार के प्रकार पर चर्चा की है | ये पूरा लेख भर्ती परीक्षाओं तथा कक्षा 5,6,7,8,9,10,11,12 आदि के लिए भी बहुत महातपूर्ण है |