‘क्रिकेट बड़ा मज़ेदार खेल है…सच ये है कि मैंने कभी प्रैक्टिस में भी छह छक्के नहीं मारे. बहुत प्यार दिया लोगों. सीने से लगाया, कंधों पर उठाया.’
‘कई बार प्रदर्शन अच्छा नहीं होता था तो सवाल भी उठाए. कामयाबी में सभी साथ हैं लेकिन जब चोट लगती है तो ख़ुद को दर्द का पता चलता है.’
‘जब तक बल्ला चल रहा है, ठाठ चल रहा है. जब बल्ला नहीं चलेगा तो फिर…’
बिड़ला सन लाइफ़ का ये महज़ 46 सेकेंड लंबा विज्ञापन आपको यूट्यूब पर मिल जाएगा.
भारतीय क्रिकेट टीम के सबसे धमाकेदार हरफ़नमौला खिलाड़ी युवराज सिंह इस ऐड में जो कह रहे हैं, वो हर बात सच लगती है.
युवी ने सोमवार को अपना बल्ला टांगने का ऐलान किया, तो 46 सेकेंड में कही उनकी हर बात और एक लंबा कामयाब करियर आंखों के सामने तैर गया.
युवराज ऐसे खिलाड़ी रहे, जिनके करियर में एक नहीं कई सारे मील का पत्थर हैं.
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कैंसर और विरोधियों को धूल चटाई
वो आक्रामक बल्लेबाज़ी और शानदार फ़ील्डिंग से पहचान बनाने के बाद कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से घिरे.
कैंसर से लड़ने अस्पताल पहुंचे, जूझे और फिर मैदान में लौटे और टीम में जगह बनाई.
अब जब युवराज ने अपने करियर पर फ़ुलस्टॉप लगाने का फ़ैसला किया है, उनके सफ़र के यादगार माइलस्टोन पर नज़र डालना ज़रूरी हो जाता है.
ये वो पांच पारियां हैं जिन्होंने सचिन, सहवाग, गांगुली जैसे विस्फोटक नामों से सजी टीम इंडिया में युवराज सिंह को सबसे ख़तरनाक बल्लेबाज़ से रूप में स्थापित कर दिया.
1. 84 रन बनाम ऑस्ट्रेलिया (आईसीसी नॉकआउट ट्रॉफ़ी, साल 2000)
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उम्र 18 साल और जिगर ऐसा जैसे कई साल से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कदम जमा रखे हों. पहली इंटरनेशनल पारी और ग्लेन मैकग्रा जैसे गेंदबाज़ का सामना. 45 रनों के निजी स्कोर पर जीवनदान मिला जिसके बाद युवराज ने 84 रनों की धमाकेदार पारी खेली.
उनकी इस पारी ने टीम को 265 रनों तक पहुंचाया जो उस वक़्त टक्कर देने लायक टोटल माना जाता था. इसके बाद फ़ील्डिंग में अपने जौहर दिखाए. इयान हार्वे का कैच लिया और एक कंगारू बल्लेबाज़ को रन आउट किया. ये मैच भारत हार गया था लेकिन टीम को लंबी रेस का आक्रामक खिलाड़ी मिल गया.
2. 69 रन बनाम इंग्लैंड (नेटवेस्ट फ़ाइनल, साल 2002)
325 रनों का पहाड़ सामने हो और टीम के सारे दिग्गज पवैलियन लौट जाएं तो नतीजे का अंदाज़ लगाना आसाना है. लेकिन युवराज सिंह और मोहम्मद कैफ़ जैसे युवा और दिलेर पिच पर हों तो अनहोनी को भी होनी में बदला जा सकता है. ये मैच भले सौरव गांगुली के टीशर्ट घुमाने और कैफ़ के पावर पंच के लिए जाना जाता है लेकिन काउंटर अटैक युवी ने शुरू किया था.
जब भारतीयों ने टीवी बंद कर टीम की हार मान ली थी, युवराज ने कैफ़ के साथ मिलकर 121 रन जोड़े और टीम इंडिया की सबसे यादगार जीत की नींव रखी. वो आउट हुए और पवैलियन लौटते हुए उनका चेहरा बता रहा था कि वो किस हद तक ख़ुद टीम को जीत तर पहुंचाना चाहते थे.
3. 139 रन बनाम ऑस्ट्रेलिया (सिडनी, साल 2004)
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वीबी सिरीज़ का सातवां मैच जिसे युवराज सिहं के करियर में विदेश में खेली गई सबसे बेहतरीन पारी में गिना जाता है. इस मैच में उनके साथ टेस्ट मैच के बादशाह माने जाने वाले वीवीएस लक्ष्मण ने 109 रनों की नाबाद पारी खेली थी. ये मैच कंगारू गेंदबाज़ इयान हार्वे को भी याद रहेगा जिनके 49वें ओवर में युवराज ने 22 रन ठोंके थे.
इस मैच में बारिश ने खलल डाला था और मैच भारत ने गंवा दिया लेकिन युवराज की ये पारी भारतीय प्रशंसकों और कंगारू गेंदबाज़, दोनों को अब भी याद होगी.
4. 107 रन बनाम पाकिस्तान (कराची, साल 2006)
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ये युवराज की वो दमदार और समझदारी वाली पारी थी जिसने पाकिस्तान में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ टीम इंडिया को 4-1 की शानदार जीत दी. इस मैच में पाकिस्तान ने पहले खेलते हुए 50 ओवर में 288 रनों का पहाड़ खड़ा किया. सलामी बल्लेबाज़ राहुल द्रविड़ और गौतम गंभीर की रवानगी के बाद युवराज ने अपना धमाकेदार स्टाइल दिखाया.
सामने महेंद्र सिंह धोनी खड़े थे जिसकी वजह से युवराज पर दबाव भी कम होता रहा. 64 रनों पर उन्हें जीवनदान मिला जिसका उन्होंने पूरा फ़ायदा उठाया और आठ विकेट से टीम इंडिया को जीत तक पहुंचा दिया.
5. 57 रन बनाम ऑस्ट्रेलिया (अहमदाबाद, साल 2011)
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रिकी पॉन्टिंग ने अपने आख़िरी विश्व कप मुकाबले में शानदार शतक लगाया और कंगारू टीम 260 रनों तक पहुंची. लेकिन ये मैच भी युवराज सिंह की पारी और उनकी दहाड़ के लिए याद रखा जाता है. नाज़ुक मोड़ पर उन्होंने टिककर खेला और फिर बाद में आक्रामक रुख़ अख़्तियार किया.
इस मैच में युवराज बल्ले ही नहीं, गेंद से भी चमके. उन्होंने दस ओवर में 44 रन देकर दो विकेट चटकाए. पाकिस्तान के साथ सेमीफ़ाइनल तय करने के लिए ये मैच जीतना ज़रूरी था और युवराज ने वही किया.
Facts About Maharana Pratap 1… महाराणा प्रताप एक ही झटके में घोड़े समेत दुश्मन सैनिक को काट डालते थे। 2…. जब इब्राहिम लिंकन भारत दौरे पर आ रहे थे । तब उन्होने अपनी माँ से पूछा कि- हिंदुस्तान से आपके लिए क्या लेकर आए ? तब माँ का जवाब मिला- ”उस महान देश की वीर भूमि हल्दी घाटी से एक मुट्ठी धूल लेकर आना, जहाँ का राजा अपनी प्रजा के प्रति इतना वफ़ादार था कि उसने आधे हिंदुस्तान के बदले अपनी मातृभूमि को चुना ।” लेकिन बदकिस्मती से उनका वो दौरा रद्द हो गया था | “बुक ऑफ़ प्रेसिडेंट यु एस ए ‘ किताब में आप यह बात पढ़ सकते हैं | 3…. महाराणा प्रताप के भाले का वजन 80 किलोग्राम था और कवच का वजन भी 80 किलोग्राम ही था| कवच, भाला, ढाल, और हाथ में तलवार का वजन मिलाएं तो कुल वजन 207 किलो था।
4…. आज भी महाराणा प्रताप की तलवार कवच आदि सामान उदयपुर राज घराने के संग्रहालय में सुरक्षित हैं |
5…. अकबर ने कहा था कि अगर राणा प्रताप मेरे सामने झुकते है, तो आधा हिंदुस्तान के वारिस वो होंगे, पर बादशाहत अकबर की ही रहेगी|
लेकिन महाराणा प्रताप ने किसी की भी अधीनता स्वीकार करने से मना कर दिया |
6…. हल्दी घाटी की लड़ाई में मेवाड़ से 20000 सैनिक थे और अकबर की ओर से 85000 सैनिक युद्ध में सम्मिलित हुए |
7…. महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का मंदिर भी बना हुआ है, जो आज भी हल्दी घाटी में सुरक्षित है |
8…. महाराणा प्रताप ने जब महलों का त्याग किया तब उनके साथ लुहार जाति के हजारो लोगों ने भी घर छोड़ा और दिन रात राणा कि फौज के लिए तलवारें बनाईं | इसी समाज को आज गुजरात मध्यप्रदेश और राजस्थान में गाढ़िया लोहार कहा जाता है| मैं नमन करता हूँ ऐसे लोगो को |
9…. हल्दी घाटी के युद्ध के 300 साल बाद भी वहाँ जमीनों में तलवारें पाई गई।
आखिरी बार तलवारों का जखीरा 1985 में हल्दी घाटी में मिला था |
10….. महाराणा प्रताप को शस्त्रास्त्र की शिक्षा “श्री जैमल मेड़तिया जी” ने दी थी, जो 8000 राजपूत वीरों को लेकर 60000 मुसलमानों से लड़े थे। उस युद्ध में 48000 मारे गए थे । जिनमे 8000 राजपूत और 40000 मुग़ल थे |
11…. महाराणा के देहांत पर अकबर भी रो पड़ा था |
12…. मेवाड़ के आदिवासी भील समाज ने हल्दी घाटी में
अकबर की फौज को अपने तीरो से रौंद डाला था । वो महाराणा प्रताप को अपना बेटा मानते थे और राणा बिना भेदभाव के उन के साथ रहते थे ।
आज भी मेवाड़ के राजचिन्ह पर एक तरफ राजपूत हैं, तो दूसरी तरफ भील |
13….. महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक महाराणा को 26 फीट का दरिया पार करने के बाद वीर गति को प्राप्त हुआ | उसकी एक टांग टूटने के बाद भी वह दरिया पार कर गया। जहाँ वो घायल हुआ वहां आज खोड़ी इमली नाम का पेड़ है, जहाँ पर चेतक की मृत्यु हुई वहाँ चेतक मंदिर है |
14….. राणा का घोड़ा चेतक भी बहुत ताकतवर था उसके
मुँह के आगे दुश्मन के हाथियों को भ्रमित करने के लिए हाथी की सूंड लगाई जाती थी । यह हेतक और चेतक नाम के दो घोड़े थे|
15….. मरने से पहले महाराणा प्रताप ने अपना खोया हुआ 85 % मेवाड फिर से जीत लिया था । सोने चांदी और महलो को छोड़कर वो 20 साल मेवाड़ के जंगलो में घूमे ।
16…. महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो और लम्बाई 7’5” थी, दो म्यान वाली तलवार और 80 किलो का भाला रखते थे हाथ में।
End of Facts About Maharana Pratap
महाराणा प्रताप के हाथी की कहानी:
मित्रो, आप सब ने महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक के बारे में तो सुना ही होगा,
लेकिन उनका एक हाथी भी था। जिसका नाम था रामप्रसाद। उसके बारे में आपको कुछ बाते बताता हुँ।
रामप्रसाद हाथी का उल्लेख अल- बदायुनी, जो मुगलों की ओर से हल्दीघाटी के
युद्ध में लड़ा था ने अपने एक ग्रन्थ में किया है।
वो लिखता है की- जब महाराणा प्रताप पर अकबर ने चढाई की थी, तब उसने दो चीजो को ही बंदी बनाने की मांग की थी । एक तो खुद महाराणा और दूसरा उनका हाथी रामप्रसाद।
आगे अल बदायुनी लिखता है की- वो हाथी इतना समझदार व ताकतवर था की उसने हल्दीघाटी के युद्ध में अकेले ही अकबर के 13 हाथियों को मार गिराया था ।
वो आगे लिखता है कि- उस हाथी को पकड़ने के लिए हमने 7 बड़े हाथियों का एक
चक्रव्यूह बनाया और उन पर14 महावतो को बिठाया, तब कहीं जाकर उसे बंदी बना पाये।
अब सुनिए एक भारतीय जानवर की स्वामी भक्ति।
उस हाथी को अकबर के समक्ष पेश किया गया ।
जहा अकबर ने उसका नाम पीरप्रसाद रखा।
रामप्रसाद को मुगलों ने गन्ने और पानी दिया।
पर उस स्वामिभक्त हाथी ने 18 दिन तक मुगलों का न तो दाना खाया और न ही
पानी पिया और वो शहीद हो गया।
तब अकबर ने कहा था कि- जिसके हाथी को मैं अपने सामने नहीं झुका पाया,
उस महाराणा प्रताप को क्या झुका पाउँगा.?
इसलिए मित्रो हमेशा अपने भारतीय होने पे गर्व करो।
Facts About Maharana Pratap
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