परहित सरिस धर्म नहिं भाई निबंध 

परहित सरिस धर्म नहिं भाई निबंध 

Parhit Saris Dharam Nahi Bhai Nibandh 

परहित सरिस धर्म नहिं भाई निबंध 

ये परहित सरिस धर्म नहिं भाई पर निबंध विभिन्न बोर्ड जैसे UP Board, Bihar Board और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं को दृश्टिगत रखते हुए लिखा गया है, अगर आपके मन  सवाल हो तो comment लिख कर पूछ सकते हैं |

इस शीर्षक से मिलते-जुलते अन्य सम्बंधित शीर्षक –

  • परोपकार
  • परोपकार का महत्त्व
  • मानवता का आधार : पराव
  • परहित बस जिनके मन माहीं
  • वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे
  • परपीड़ा सम नहिं अधमाई

” वह शरीर क्या जिससे जग का , कोई भी उपकार न हो ।

वृथा जन्म उस नर का जिसके , मन में दया – विचार न हो । ” – आर सी प्रसाद सिंह  

गंगा नदी पर निबंध की रूपरेखा 

  1. प्रस्तावना
  2. सभी मनुष्य समान हैं
  3. प्रकृति और परोपकार
  4. परोपकार क उदाहरण
  5. परोपकार के लाभ
  6. परोपकार के विभिन्न रूप
  7. उपसंहार

1- प्रस्तावना 

क्या कभी शीत में काँपती हुई किसी वृद्धा को कम्बल उढ़ाते समय तुमने उसकी आँखों में झाँककर देखा है अथवा भूख से बिलबिलाते बच्चे को दो रोटी देते समय उसके कोमल कपोलों पर उभरता मुस्कान को देखा है ?

क्या तुमने सड़क पार करने की प्रतीक्षा में खडे वृद्धा का हाथ पकड़कर सड़क पार कराते समय उसक चेहरे पर फैली झुर्रियों को पढ़कर देखा है ? अथवा क्या तुमने ज्वर की तीव्रता में बड़बड़ाते किसा युवक पिलाते समय उसके शान्त होंठों को बुदबुदाते हुए देखा है ?

कैसे असीम सुख और आह्लाद की अनुभूति होता है उन नेत्रों में ! वस्तुत : परोपकार का आनन्द ही अद्भुत होता है ।

मानव एक सामाजिक प्राणी है ; अत : समाज में रहकर उसे अन्य प्राणियों के प्रति कुछ दायित्वों का भी निर्वाह करना पड़ता है । इसमें परहित अथवा परोपकार की भावना पर आधारित दायित्व सर्वोपरि है ।

तुलसीदास जी के अनुसार जिनके हृदय में परहित का भाव विद्यमान है , वे संसार में सबकुछ कर सकते हैं । उनके लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं है

परहित बस जिनके मन माहीं । तिन्ह कहँ जग दुर्लभ कछु नाहीं ॥ ।

2- सभी मनुष्य समान हैं

भगवान् द्वारा बनाए गए समस्त मानव समान हैं ; अत : इनमें परस्पर प्रेमभाव होना ही चाहिए । किसी व्यक्ति पर संकट अने पर दूसरों को उसकी सहायता अवश्य करनी चाहिए ।

दूसरों को कष्ट से कराहते हुए देखकर भी भोग – विलास में लिप्त रहना उचित नहीं है । अकेले ही भाँति – भाँति के भोजन करना और आनन्दमय रहना तो पशुओं की प्रवृत्ति है ।

मनुष्य तो वही है जो मानव – मात्र हेतु अपना सब – कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार रहे –

यही पशु प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे ।

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे ।। – मैथिलीशरण गुप्त

3- प्रकृति और परोपकार

प्राकृतिक क्षेत्र में सर्वत्र परोपकार – भावना के दर्शन होते हैं । सूर्य सबके लिए प्रकाश विकीर्ण करता है । चन्द्रमा की शीतल किरणें सभी का ताप हरती हैं । मेघ सबके लिए जल की वर्षा करते हैं । वायु सभी के लिए जीवनदायिनी है । फूल सभी के लिए अपनी सुगन्ध लुटाते हैं । वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते और नदियाँ अपने जल को संचित करके नहीं रखती ।

इसी प्रकार सत्पुरुष भी दूसरों के हित के लिए ही अपना शरीर धारण करते हैं

वृच्छ कबहुँ नहीं फल भखें , नदी न संचै नीर ।

परमारथ के कारने , साधुन धरा सरीर ॥ – रहीम 

 

4- परोपकार क उदाहरण

इतिहास एवं पुराणों में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं , जिनको पढ़ने से यह विदित होता है कि परोपकार के लिए महान् व्यक्तियों ने अपने शरीर तक का त्याग कर दिया ।

पुराण में एक कथा आती है कि एक बार वृत्रासुर नामक महाप्रतापी राक्षस का अत्याचार बहुत बढ़ गया था । चारों ओर त्राहि – त्राहि मच गई थी । उसका वध दधीचि ऋषि की अस्थियों से निर्मित वज्र से ही हो सकता था ।

उसके अत्याचारों से दु : खी होकर देवराज इन्द्र दधीचि की सेवा में उपस्थित हुए और उनसे उनकी अस्थियों के लिए याचना की। महर्षि दधीचि ने प्राणायाम के द्वारा अपना शरीर त्याग दिया और इन्द्र ने उनकी अस्थियों से बनाए गए वज्र से वृत्रासुर का वध किया।

इसी प्रकार महाराज शिबि ने एक कबूतर के प्राण बचाने के लिए अपने शरीर का मांस भी दे दिया।

सचमुच वे महान पुरुष धन्य हैं : जिन्होंने परोपकार के लिए अपने शरीर एवं प्राणों की भी चिन्ता नहीं की ।

मैथिलीशरण गुप्त ने कहा है-

क्षुधार्त्ता रन्तिदेव ने दिया करस्थ चाल भी ,

तथा दधीचि ने दिया परार्थ अस्थिजाल भी ।

उशीनर क्षितीश ने स्वयांस दान भी किया ,

सहर्ष वीर कर्ण ने शरीर – चर्म भी दिया ।

अनित्य देह के लिए अनादि जीव क्या डरे ,

वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे ।

संसार के कितने ही महान कार्य परोपकार की भावना के फलस्वरूप ही सम्पन्न हुए हैं । महान् देशभक्तों ने पारोपकार की भावना से प्रेरित होकर ही अपने प्राणों की बलि दे दी ।

उनके हृदय में देशवासियों का कल्याण – कामना ही निाहत थी। हमारे देश के अनेक महान सन्तों ने भी लोक – कल्याण की भावना से प्रेरित होकर ही अपना सम्पूर्ण जीवन ‘सर्वजन हिताय ‘ समर्पित कर दिया । महान वैज्ञानिकों ने अपने आविष्कारों से जन – जन का कल्याण किया है |

5- परोपकार के लाभ

परोपकार की भावना से मानव के व्यक्तित्व का विकास होता है । परोपकार की भावना का उदय होने पर मानव ‘ स्व ‘ की सीमित परिधि से ऊपर उठकर ‘ पर ‘ के विषय में सोचता है ।

इस प्रकार उसकी आत्मिक शक्ति का विस्तार होता है और वह जन – जन के कल्याण की ओर अग्रसर होता है । परोपकार भ्रातृत्व भाव का भी परिचायक है ।

परोपकार की भावना ही आगे बढ़कर विश्वबन्धुत्व के रूप में परिणत होती है । यदि सभी लोग परहित की बात सोचते रहें तो परस्पर भाईचारे की भावना में वृद्धि होगी और सभी प्रकार के लड़ाई – झगड़े स्वतः ही समाप्त हो जाएँगे । परोपकार से मानव को अलौकिक आनन्द की अनुभूति होती है ।

इसका अनुभव सहज में ही किया जा सकता है । यदि हम किसी व्यक्ति को संकट से उबारें , किसी भूखे को भोजन दें अथवा किसी नंगे व्यक्ति को वस्त्र दें तो इससे हमें स्वाभाविक आनन्द की प्राप्ति होगी । हमारी संस्कृति में परोपकार को पुण्य तथा परपीड़न को पाप माना गया है

‘ परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीडनम् ‘

चार वेद छह शास्त्र में , बात मिली हैं दोय ।

सुख दीन्हें सुख होत है , दुःख दीन्हें दुःख होय । ।

6- परोपकार के विभिन्न रूप

परोपकार की भावना अनेक रूपों में प्रकट होती दिखाई पड़ती है । धर्मशालाओं , धर्मार्थ औषधालयों एवं जलाशयों आदि का निर्माण तथा भूमि , भोजन , वस्त्र आदि का दान परोपकार के ही विभिन्न रूप हैं ।

इनके पीछे सर्वजन हिताय एवं प्राणिमात्र के प्रति प्रेम की भावना निहित रहती है । परोपकार की भावना केवल मनुष्यों के कल्याण तक ही सीमित नहीं है , इसका क्षेत्र समस्त प्राणियों के हितार्थ किए जाने वाले समस्त प्रकार के कार्यों तक विस्तृत है ।

अनेक धर्मात्मा गायों के संरक्षण के लिए गोशालाओं तथा पशुओं के जल पीने के लिए हौजों का निर्माण कराते हैं । यहाँ तक कि बहुत – से लोग बन्दरों को चने खिलाते हैं तथा चीटियों के बिलों पर शक्कर अथवा आटा डालते हुए दिखाई पड़ते हैं । परोपकार में ‘ सर्वभूतहिते रतः ‘ की भावना विद्यमान है ।

गम्भीरतापूर्वक विचार किया जाए तो संसार के सभी प्राणी परमपिता परमात्मा के ही अंश हैं ; अत : हमारा यह परम कर्तव्य है कि हम सभी प्राणियों के हित – चिन्तन में रत रहें । यदि सभी लोग इस भावना का अनुसरण करें तो संसार से शीघ्र ही दुःख एवं दरिद्रता का लोप हो जाएगा ।

7- उपसंहार

परोपकारी व्यक्तियों का जीवन आदर्श माना जाता है । उनका यश चिरकाल तक स्थायी रहता है । मानव स्वभावतः यश की कामना करता है । परोपकार के द्वारा उसे समाज में सम्मान तथा स्थायी यश की प्राप्ति हो सकती है । महर्षि दधीचि , महाराज शिबि , हरिश्चन्द्र , राजा रन्तिदेव जैसे पौराणिक चरित्र आज भी अपने परोपकार के कारण ही याद किए जाते हैं ।

भगवान बुद्ध ‘ बहुजन – हिताय बहुजन – सुखाय ‘ का चिन्तन करने के कारण ही पूज्य माने जाते हैं । वर्तमान युग में भी लोकमान्य बालगंगाधर तिलक , महात्मा गांधी तथा पं० मदनमोहन मालवीय जैसे महापरुष परोपकार एवं लोक – कल्याण की भावना से प्रेरित होने के कारण ही जन – जन के श्रद्धा – भाजन बने ।

परोपकार से राष्ट्र का चरित्र जाना जाता है । जिस समाज में जितने अधिक परोपकारी व्यक्ति होंगे वह उतना ही सुखी होगा । समाज में सुख – शान्ति के विकास के लिए परोपकार की भावना के विकास की परम आवश्यकता है ।

इस दृष्टि से गोस्वामी तुलसीदास के शब्दों में यह कहना भी उपयुक्त ही होगा

“परहित सरिस धर्म नहिं भाई। परपीड़ा सम नहिं अधमाई ॥

अर्थात् परोपकार के समान कोई धर्म नहीं है और परपीड़ा के समान कोई पाप नहीं है ।

अगर आपको ये लेख Television Par Nibandh पसंद आये तो शेयर जरूर करें |

दूरदर्शन ( टेलीविजन ) पर निबंध

दूरदर्शन ( टेलीविजन ) पर निबंध

Television Par Nibandh / Doordarshan Par Nibandh

दूरदर्शन ( टेलीविजन ) पर निबंध

ये दूरदर्शन ( टेलीविजन ) पर निबंध विभिन्न बोर्ड जैसे UP Board, Bihar Board और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं को दृश्टिगत रखते हुए लिखा गया है, अगर आपके मन  सवाल हो तो comment लिख कर पूछ सकते हैं |

इस शीर्षक से मिलते-जुलते अन्य सम्बंधित शीर्षक –

  • जन – शिक्षा में दूरदर्शन की भूमिका ,
  • शिक्षा और दूरदर्शन ,
  • दूरदर्शन की उपयोगिता ( 2004 ) ,
  • दूरदर्शन : लाभ – हानि ,
  • दूरदर्शन : गुण एवं दोष ,
  • दूरदर्शन और समाज ( 2001 , 03 )

गंगा नदी पर निबंध की  रूपरेखा 

  1. प्रस्तावना
  2. दूरदर्शन का आविष्कार
  3. दूरदर्शन यन्त्र की तकनीक
  4. दूरदर्शन के लाभ
  5. भारत में दूरदर्शन
  6. उपसंहार

1- प्रस्तावना 

कुछ समय पहले तक जब हम किसी जादूगर की कहानी में पढ़ते थे कि जादूगर ने जैसे ही अपने ग्लोब पर हाथ घुमाया वैसे ही उसका शत्रु ग्लोब पर दिखाई देने लगा और जादूगर ने उसकी सारी क्रियाओं को अपनी गुफा में बैठकर ही देख लिया , तो हमें महान् आश्चर्य होता था ।

आज इस प्रकार का जादू हम प्रतिदिन अपने घर करते हैं । स्विच ऑन करते ही बोलती हुई रंग – बिरंगी तस्वीरें हमारे सामने आ जाती हैं । यह सब टेलीविजन का ही चमत्कार है , जिसके माध्यम से हम हजारों – लाखों मील दूर की क्रियाओं को दूरदर्शन – यन्त्र पर देख सकते हैं ।

2- दूरदर्शन का आविष्कार

25 जनवरी , 1926 ई० को इंग्लैण्ड में एक इंजीनियर जॉन बेयर्ड ने रॉयल इंस्टीट्यूट के सदस्यों के सामने टेलीविजन का सर्वप्रथम प्रदर्शन किया था ।

उसने रेडियो तरंगों की सहायता से बगलवाले कमरे में बैठे हुए वैज्ञानिकों के सामने कठपुतली के चेहरे का चित्र निर्मित किया था । विज्ञान के लिए यह एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण घटना थी । सैकड़ों – हजारों वर्ष के स्वप्न को जॉन बेयर्ड ने सत्य कर दिखाया था ।

3- दूरदर्शन यन्त्र की तकनीक

दूरदर्शन यन्त्र बहुत – कुछ उसी सिद्धान्त पर काम करता है , जिस सिद्धान्त पर रेडियो । अन्तर केवल इतना है कि रेडियो तो किसी ध्वनि को विद्युत – तरंगों में बदलकर उन्हें दूर – दूर तक प्रसारित कर देता है और इसी प्रकार प्रसारित की जा रही विद्युत – तरंगों को फिर ध्वनि में बदल लेता है ,

परन्तु दूरदर्शन – यन्त्र प्रकाश को विद्युत – तरंगों में बदलकर प्रसारित करता है । रेडियो द्वारा प्रसारित की जा रही ध्वनि को हम सुन सकते हैं और दूरदर्शन द्वारा प्रसारित किए जा रहे कार्यक्रम को देख सकते हैं ।

दूरदर्शन के प्रसारण – यन्त्र के लिए एक विशेष प्रकार का कैमरा होता है । इस कैमरे के सामने का दृश्य जिस परदे पर प्रतिबिम्बित होता है , उसे ‘ मोज़ेक ‘ कहते हैं । इस मोज़ेक में 405 क्षैतिज ( पड़ी ) रेखाएँ होती हैं ।

इस मोज़ेक पर एक ऐसे रासायनिक पदार्थ का लेप रहता है ; जो प्रकाश के लिए अत्यधिक संवेदनशील होता है । इलेक्ट्रॉनों द्वारा प्रकाश की किरणें मोज़ेक पर इस ढंग से फेंकी जाती है कि वे मोज़ेक की 405 लाइनों पर बारी – बारी से एक सेकण्ड में 25 बार गुजर जाती हैं ।

मोज़ेक पर लगा लेप इस पर पड़नेवाले प्रकाश से प्रभावित होता है । किसी वस्तु या दृश्य के उज्ज्वल अंशों से आनेवाला प्रकाश तेज और काले अंशों से आनेवाला प्रकाश मन्द होता है । यह प्रकाश एक ‘ कैथोड किरण ट्यूब ‘ पर पड़ता है ।

इस ट्यूब में प्रकाश की तीव्रता या मन्दता के अनुसार बिजली की तेज या मन्द तरंगें उत्पन्न होती हैं । इन तरंगों को रेडियो की तरंगों की भाँति प्रसारित किया जाता है और ग्रहण – यन्त्र के द्वारा फिर प्रकाश में बदल लिया जाता है ।

एक विचित्र तथ्य यह है कि सीधी रेखा में चलती हुई दूरदर्शन की विद्युत – तरंगें लाखों – करोड़ों मील दूर तक सरलता से पहुँच जाती हैं , परन्तु पृथ्वी की गोलाई के कारण वे पृथ्वी के एक भाग से दूसरे भाग तक एक निश्चित दूरी तक ही पहुँच पाती हैं ।

दूरदर्शन का प्रसारण – स्तम्भ जितना ऊँचा होगा उतनी ही दूर तक उसका प्रसारित चित्र दूरदर्शन – ग्रहण – यन्त्र पर दिखाई पड़ सकेगा ।

इस बाधा के कारण पहले अमेरिका से प्रसारित दूरदर्शन – कार्यक्रम यरोप या अन्य महाद्वीपों में नहीं देखे जा सकते थे परन्तु अब कृत्रिम उपग्रहों पर प्रक्षिप्त करके इन्हें कहीं भी देखा जा सकता है ।

उपग्रहों की सहायता से अब सारी पृथ्वी के मौसम के चित्र दूरदर्शन पर देखे जा सकते हैं । अब तो विश्व में टेलीविजन चैनलों का जाल – सा बिछ गया है ।

भारतीय दूरदर्शन के साथ – साथ इस समय हम अपने ही देश में स्टार टी०वी० , जी०टी०वी० , सी०एन०एन० , ई०टी०सी० , बी०बी०सी० , एम०टी०वी० , स्टार प्लस आदि 50 से भी अधिक टेलीविजन – नेटवर्क के द्वारा प्रसारित कार्यक्रमों को देख सकते हैं , अपना मनोरंजन कर सकते हैं तथा विश्व की घटनाओं से क्षणभर में परिचित हो सकते हैं ।

 

4- दूरदर्शन के लाभ :

दूरदर्शन अनेक दृष्टियों से लाभकारी सिद्ध हो रहा है । कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में दूरदर्शन के लाभ महत्त्व अथवा उपयोगिताओं का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

( क ) वैज्ञानिक अनुसन्धान तथा अन्तरिक्ष क्षेत्र में दूरदर्शन के प्रयोग – दूरदर्शन का प्रयोग केवल मनोरंजन के लिए ही नहीं, अपितु वैज्ञानिक अनुसन्धान के लिए भी किया गया है।

चन्द्रमा पर भेजे गए अन्तरिक्ष यानों में दूरदर्शन – यन्त्र लगाए गए थे और उन्होंने वहाँ से चन्द्रमा के बहुत सुन्दर चित्र पृथ्वी पर भेजे । जो अमेरिकी अन्तरिक्ष – यात्री चन्द्रमा पर गए थे उनके पास भी दूरदर्शन – कैमरे थे और उन्होंने पृथ्वी पर स्थित लोगों को भी उसके तल का ऐसा दर्शन करा दिया , मानो वे भी चन्द्रमा पर ही घूम – फिर रहे हों ।

मंगल तथा शुक्र ग्रहों की ओर भेजे गए अन्तरिक्ष – यानों में लगे दूरदर्शन – यन्त्रों ने उन ग्रहों के सबसे अच्छे तथा विश्वसनीय चित्र पृथ्वी पर भेजे हैं । एक विचार है , परन्तु पृथ्वी की गाला जितना ऊँचा होगा उतना प्रसारित दूर

( ख ) चिकित्सा व शिक्षा के क्षेत्र में दूरदर्शन के प्रयोग – अन्य क्षेत्रों में भी टेलीविजन की उपयोगिता को वैज्ञानिकों ने पहचाना है ।

उदाहरण के लिए ; यदि कोई अनुभवी सर्जन एक कमरे में हृदय का ऑपरेशन कर रहा है तो उस कमरे में अधिक – से – अधिक पाँच या छह विद्यार्थी ही ऑपरेशन की क्रिया को देखकर ऑपरेशन का सही तरीका सीख सकते हैं ; किन्तु टेलीविजन की सहायता से एक बड़े हॉल में परदे पर ऑपरेशन की सम्पूर्ण क्रिया तीन – चार – सौ विद्यार्थियों को सुगमता से दिखाई जा सकती है ।

अमेरिका के कछ बड़े अस्पताला क ऑपरेशन – थिएटरों में स्थायी रूप से टेलीविजन के यन्त्र लगा दिए गए हैं . जिससे महत्त्वपूर्ण ऑपरेशन का क्रियाए टेलीविजन द्वारा परदे पर विद्यार्थियों को दिखाई जा सकें । ”

( ग ) उद्योग और व्यवसाय के क्षेत्र में दरदर्शन के प्रयोग – उद्योग और व्यवसाय के क्षेत्र में टेलीविजन महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है ।

कुछ ही दिन हुए, अमेरिका की एक औद्योगिक प्रदर्शनी में यह दिखाया गया था कि किस प्रकार टेलीविजन की सहायता से दूर से ही इंजीनियर भारी बोझ उठानेवाली क्रेन का परिचालन कर सकता है।

यद्यपि क्रेन इंजीनियर की दृस्टि से परे रहता है परन्तु क्रेन का चित्र टेलीविजन के परदे पर हर क्षण रहता है ; अत : दूर बैठा हुआ इंजीनियर कल – पुर्जों की सहायता से क्रेन का समुचित रूप से परिचालन करने में समर्थ होता है ।

5- भारत में दूरदर्शन

भारत में दूरदर्शन का पहला केन्द्र नई दिल्ली में 15 सितम्बर , 1959 ई० में प्रारम्भ हुआ था । प्रायोगिक रूप में तब इसके प्रसारण को केवल दिल्ली और उसके निकट के क्षेत्रों में ही देखा जा सकता था ।

प्रारम्भ में दूरदर्शन के प्रसारण की अवधि मात्र साठ मिनट की थी तथा इसके प्रसारण को सप्ताह में दो बार ही देखा जा सकता था । धीरे – धीरे सन 1963 ई० में दूरदर्शन के कार्यक्रमों में नियमितता आई । वर्ष 1975 – 76 में ‘ साइट ‘ कार्यक्रम के अन्तर्गत उपग्रह – प्रसारण का सफल परीक्षण किया गया । सन् 1983 ई० में इनसेट – 1बी का सफल प्रक्षेपण हुआ ।

वास्तव में यह दूरदर्शन के लिए वरदान सिद्ध हुआ । इस वर्ष देश में 45 ट्रांसमीटरों तथा 7 केन्द्रों की स्थापना हुई । देश की २८ प्रतिशत जनसंख्या तक दूरदर्शन की सीधी पहुँच बनी । 1982 ई० का वर्ष भारतीय दूरदर्शन का स्वर्णिम वर्ष था ।

अभी तक दूरदर्शन के कार्यक्रम श्वेत – श्याम ( ब्लैक एण्ड व्हाइट ) थे । 15 अगस्त , 1982 ई० से टेलीविजन पर रंगीन कार्यक्रमों का प्रसारण आरम्भ हुआ और इसके राष्ट्रीय कार्यक्रमों की नींव डाली गई । सन् 1984 ई० में 172 ट्रांसमीटरों की स्थापना की गई और दूरदर्शन देश की आधी जनसंख्या तक पहुँच गया ।

17 सितम्बर , 1984 ई० को दिल्ली में तथा 1 मई , 1985 ई० को मुम्बई में दूसरे चैनल का आरम्भ हुआ । अप्रैल 1984 ई० में कार्यक्रमों का समय बढ़ाया गया और इसकी अवधि 60 से 90 मिनट कर दी गई ।

एक सरकारी सूचना के अनुसार अब दूरदर्शन कार्यक्रमों की पहुँच देश की 76 करोड़ जनसंख्या तक हो गई है । दूरदर्शन के 558 टान्समीटरों के माध्यम से देश के 65 प्रतिशत क्षेत्र में रहनेवाली 84 प्रतिशत जनसंख्या को दरदर्शन के कार्यक्रम उपलब्ध हैं ।

सभी केन्द्रों को मिलाकर दूरदर्शन द्वारा प्रति सप्ताह लगभग 488 घण्टे का प्रसारण किया जा रहा है । विदेशी टेलीविजन कार्यक्रमों की प्रतिस्पर्धा ने भारतीय दूरदर्शन को भी प्रभावित किया है । इस दृस्टि से दूरदर्शन के कार्यक्रमों के विस्तार की आवश्यकता अनुभव की गई ।

इसके अतिरिक्त दूरदर्शन सम्बन्धी कार्यक्रमों में गुणवत्ता तथा विविधता भी आवश्यक थी । परिणामत : 15 अगस्त , 1993 ई० को केन्द्रीय सरकार ने उपग्रह की हायता तथा डिश – ऐण्टीना के माध्यम से दूरदर्शन के पांच नए उपग्रह चैनेल आरम्भ किए ।

मार्च 2003 में एक इंग्लिश न्यूज़ चैनल ‘टुडे नैटवर्क ‘ आरम्भ किया गया है , जो चौबीसों घण्टे देश – विदेश के समाचारों का प्रसारण कर रहा है । टी०वी० के सरकारी चैनल दूरदर्शन के अपने लगभग 30 चैनल कार्यरत हैं , जिनमें से कुछ की सेवाएँ विदेशों को भी प्रदान की जा रही हैं । विशेष रूप से 12 ‘अरब’ राष्ट्रों में से अधिकांश को रहा है ।

डी०डी० न्यूज नामक दूरदशन चैनल पर चौबीस घण्टे समाचार का प्रसारण किया जाता है । इसके अतिरक्ति स्टार न्यूज , एन० डी० टावी , आज तक , सहारा राष्ट्रीय , सहारा उत्तर प्रदेश एवं ‘ उत्तराखण्ड जैसे चैनल भी  समाचार प्रसारित करने में संलग्न है ।

इन चैनेलों के माध्यम से मनोरंजन , खेल – कूद , सांस्कृतिक , सामाजिक तथा व्यापारिक कार्यक्रमों को गति मिलेगी और देश का अधिकांश क्षेत्र दूरदर्शन के कार्यक्रमों से जुड़ सकेगा ।

6- उपसंहार

इस प्रकार टेलीविजन हमारे मनोरजन का सशक्त माध्यम है । भीड़ – भरे स्थलों पर विशिष्ट समारोहों में क्रीडा – प्रतियोगिताओं में तथा जहाँ हम सरलता से नहीं पहुँच सकते , टेलीविजन के माध्यम से वहाँ पर उपस्थित रहने जैसा सुख प्राप्त करते हैं ।

अगर आपको ये लेख Television Par Nibandh पसंद आये तो शेयर जरूर करें |

यदि मैं प्रधानमन्त्री होता निबंध

यदि मैं प्रधानमन्त्री होता निबंध

Yadi Main Pradhan Mantri Hota Nibandh

यदि मैं प्रधानमन्त्री होता निबंध

ये यदि मैं प्रधानमन्त्री होता निबंध विभिन्न बोर्ड जैसे UP Board, Bihar Board और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं को दृश्टिगत रखते हुए लिखा गया है, अगर आपके मन  सवाल हो तो comment लिख कर पूछ सकते हैं |

इस शीर्षक से मिलते-जुलते अन्य सम्बंधित शीर्षक –

  • गंगा तेरा पानी अमृत
  • मुक्तिदायिनी गंगा ।

गंगा नदी पर निबंध की  रूपरेखा 

  1. प्रस्तावना
  2. देश के शासन में प्रधानमन्त्री का महत्त्व
  3. प्रधानमन्त्री के रूप में क्या करता
  4. उपसंहार

1- प्रस्तावना 

मैं स्वतन्त्र भारत का नागरिक हूँ और मेरे देश की शासन – व्यवस्था का स्वरूप जनतन्त्रीय है । यहाँ का प्रत्येक नागरिक , संविधान के नियमों के अनुसार , देश की सर्वोच्च सत्ता को सँभालने का अधिकारी है ।

मानव – मन स्वभाव से ही महत्त्वाकांक्षी है । मेरे मन में भी एक महत्त्वाकांक्षा है और उसकी पूर्ति के लिए मैं निरन्तर प्रयासरत भी हूँ । मेरी इच्छा है कि मैं भारतीय गणराज्य का प्रधानमन्त्री बनें ।

मैं इस बात को भली प्रकार जानता हूँ कि प्रधानमन्त्री का पद कोई फूलों की शय्या नहीं , वरन् काँटों का मुकुट है । किसी भी देश का प्रधानमन्त्री होना परम गौरव की बात है ; किन्तु यह पद इतना महत्त्वपूर्ण और कर्तव्य की भावना से परिपूर्ण है कि प्रत्येक व्यक्ति इस उत्तरदायित्व का ठीक – ठीक निर्वाह नहीं कर सकता ।

2- देश के शासन में प्रधानमन्त्री का महत्त्व

मैं इस बात को भली प्रकार जानता हूँ कि संसदात्मक शासन – व्यवस्था में , जहाँ वास्तविक कार्यकारी शक्ति मन्त्रिपरिषद् में निहित होती है , देश के शासन का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व प्रधानमन्त्री पर ही होता है ।

वह केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् का अध्यक्ष और नेता होता है । वह मन्त्रिपरिषद् की बैठकों की अध्यक्षता तथा उसकी कार्यवाही का संचालन करता है । मन्त्रिपरिषद् के सभी निर्णय उसकी इच्छा से प्रभावित होते हैं ।

अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति तथा उनके विभागों का वितरण प्रधानमन्त्री की इच्छा के अनुसार ही किया जाता है । मन्त्रिपरिषद् यदि देश की नौका है तो प्रधानमन्त्री इसका नाविक ।

3- प्रधानमन्त्री के रूप में क्या करता

आप मुझसे पूछ सकते हैं कि प्रधानमन्त्री बनने के बाद तुम क्या करोगे ? मैं यही कहना चाहूँगा कि प्रधानमन्त्री बनने के बाद मैं राष्ट्र के विकास के लिए निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण कार्य करूँगा

( क ) राजनैतिक स्थिरता – आज सारा देश विभिन्न आन्दोलनों से घिरा है । जिधर देखिए उधर आन्दोलन हो रहे हैं । कभी असम का आन्दोलन तो कभी पंजाब में अकालियों का आन्दोलन । कभी हिन्दी – विरोधी आन्दोलन तो • कभी वेतन – वृद्धि के लिए आन्दोलन । ऐसा लगता है कि अपने राजनैतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए प्रत्येक दल और प्रत्येक वर्ग आन्दोलन का मार्ग अपनाए हुए है ।

विरोधी दल सत्तारूढ़ दल पर पक्षपात का आरोप लगाता है तो सत्तारूढ़ दल विरोधी दलों पर तोड़ – फोड़ का आरोप लगाता रहता है । मैं विरोधी दलों के महत्त्वपूर्ण नेताओं से बातचीत करके उनकी उचित माँगों को मानकर देश में राजनैतिक स्थिरता स्थापित करने का प्रयास करूंगा ।

मैं प्रेम और नैतिकता पर आधारित आचरण करते हुए राजनीति को स्थिर बनाऊँगा ।

( ख ) अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र में हमारा देश शान्तिप्रिय देश है – हमने कभी किसी देश पर आक्रमण नहीं किया पर किसी भी आक्रमण का मुंहतोड़ जवाब अवश्य दिया है ।

चीन और पाकिस्तान हमारे पड़ोसी देश हैं । दुर्भाग्य से ये दोनों ही देश पारस्परिक सम्बन्धों में निरन्तर विष घोलते रहते हैं । अपनी परराष्ट्र नीति की प्राचीन परम्परा को निभाते हए मैं इस बात का प्रयास करूंगा कि पड़ोसी देशों से हमारे सम्बन्ध निरन्तर मधुर बने रहें ।

हम पूज्य महात्मा गांधी और पं० जवाहरलाल नेहरू के बताए मार्ग पर चलते रहेंगे । किन्तु यदि किसी देश ने हमें अहिंसक समझकर हम पर आक्रमण किया तो हम उसका मुंहतोड़ जवाब देंगे ।

गीता ‘ ने भी हमें यही शिक्षा दा है – ‘ हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गम । 

 

 ( ग ) राष्ट्रीय सुरक्षा और मेरी नीति – देश की सुरक्षा दो स्तरों पर करनी पड़ती है – देश की सीमाओं की सुरक्षा ; अर्थात् बाह्य आक्रमण से सुरक्षा तथा आन्तरिक सुरक्षा । प्रत्येक राष्ट्र अपनी सार्वभौमिकता की रक्षा के लिए प्रत्येक स्तर पर आवश्यक प्रबन्ध करता है ।

प्रधानमन्त्री के महत्त्वपूर्ण पद पर रहते हुए मैं राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सदैव प्रयत्नशील रहूँगा और देश पर किसी भी प्रकार की आँच न आने दूंगा । बाह्य सुरक्षा के लिए मैं अपने देश की सैनिक – शक्ति को सदढ बनाने का पूरा प्रयत्न करूँगा तथा आन्तरिक सुरक्षा के लिए पुलिस एवं गुप्तचर विभाग को प्रभावशाली बनाऊँगा ।

राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम का कड़ाई से पालन किया जाएगा और ऐसे व्यक्तियों को कड़ी सजा दी जाएगी जो राष्ट्रीय एकता और सुरक्षा को खण्डित करने का दुष्प्रयास करेंगे ।

( घ ) देश के लिए उचित शिक्षा – नीति – मैं इस बात को अच्छी तरह जानता हूँ कि शिक्षा ही हमारे उत्थान का सही मार्ग बता सकती है । दुर्भाग्य से हमारे राष्ट्रीय – नेताओं ने इस ओर विशेष ध्यान नहीं दिया ।

मैं इस प्रकार की शिक्षा – नीति बनाऊँगा ; जो विद्यार्थियों को चरित्रवान् , कर्त्तव्यनिष्ठ और कुशल नागरिक बनाने में सहायता प्रदान करे तथा उन्हें श्रम की महत्ता का बोध कराए ।

इस प्रकार हमारे देश में देशभक्त नागरिकों का निर्माण होगा और देश से बेरोजगारी के अभिशाप को भी मिटाया जा सकेगा । मैं शिक्षा का राष्ट्रीयकरण करके गुरु – शिष्य – परम्परा की प्राचीन परिपाटी को पुनः प्रारम्भ करूँगा ।

( ङ ) आर्थिक सुधार और मेरी नीतियाँ – हमारे देश में अथाह प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध हैं । दुर्भाग्य से हम इनका भरपूर उपयोग नहीं कर पा रहे हैं । इसीलिए सम्पन्न देशों की तुलना में हम एक निर्धन देश के वासी कहलाते हैं ।

मैं इस प्रकार का प्रयास करूंगा कि हमारे देश की प्राकृतिक सम्पदा का अधिक – से – अधिक और सही उपयोग किया जा सके । कृषि के क्षेत्र में अधिक उत्पादन हेतु वैज्ञानिक तकनीकें प्रयुक्त की जाएंगी । मैं किसानों को पर्याप्त आर्थिक सुविधाएँ प्रदान करूँगा तथा उत्पादन , उपभोग और विनिमय में सन्तुलन स्थापित करूँगा ।

बैंकिंग प्रणाली को अधिक उदार और सक्षम बनाने का प्रयास करूँगा , जिससे जरूरतमन्द लोगों को समय पर आर्थिक सहायता प्राप्त हो सके । कृषि के विकास के साथ – साथ मैं देश के औद्योगीकरण का भी पूरा प्रयास करूंगा , जिससे प्रगति की दौड़ में मेरा देश किसी से भी पीछे न रह जाए ।

नए – नए उद्योग स्थापित करके देश की अर्थव्यवस्था को सदढ़ बनाना भी मेरी आर्थिक नीति का प्रमुख उद्देश्य होगा ।

( च ) बेरोजगारी की समस्या- का समाधान देश की बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ हमारे देश में बेरोजगारी की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है । सर्वप्रथम मैं लोगों को जनसंख्या नियोजन के लिए प्रेरित करूँगा । मेरे शासन में देश का कोई नवयुवक बेरोजगार नहीं घूमेगा ।

शिक्षित युवकों को उनकी योग्यता के अनुरूप कार्य दिलाना मेरी सरकार का दायित्व होगा । साथ – साथ नवयुवकों को स्व – रोजगार के लिए पर्याप्त आर्थिक सहायता भी प्रदान की जाएगी । भिक्षावृत्ति पर पूरी तरह रोक लगा दी जाएगी ।

( छ ) खाद्य – समस्या का निदान – हमारा देश कृषि – प्रधान है । इस देश की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या कषि – कार्य पर निर्भर है । फिर भी यहाँ खाद्य – समस्या निरन्तर अपना मुँह खोले खड़ी रहती है और हमें विदेशों से खाद्य सामग्री मँगानी पड़ती है ।

इस समस्या के निदान के लिए मैं वैज्ञानिक खेती की ओर विशेष ध्यान दूँगा । नवीन कषि – यन्त्रों और रासायनिक खादों का प्रयोग किया जाएगा तथा सिंचाई के आधुनिक साधनों का जाल बिछा दिया जाएगा : जिससे देश की तनिक भूमि भी बंजर या सूखी न पड़ी रहे ।

किसानों के लिए उत्तम और अधिक उपज देनेवाले बीजों की व्यवस्था की जाएगी । सबसे महत्त्वपूर्ण बात होगी – कृषि – उत्पादन का सही वितरण और संचयन । इसके लिए सहकारी संस्थाएँ और समितियाँ किसानों की भरपूर सहायता करेंगी ।

 ( ज ) सामाजिक सुधार- किसी भी देश की वास्तविक प्रगति उस समय तक नहीं हो सकती जब तक उसके नागरिक चरित्रवान , ईमानदार और राष्ट्रभक्त न हों । हमारा देश इस समय सामाजिक , आर्थिक , राजनैतिक . शैक्षिक आदि विभिन्न प्रकार की समस्याओं से ग्रस्त है ।

यहाँ मुनाफाखोरी , रिश्वतखोरी , जमाखोरी तथा भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहरी जम चुकी हैं । इन समस्याओं को दूर करने के लिए मैं स्वयं को पूर्णत : समर्पित कर दूंगा । मेरे शासन में प्रत्येक वस्त का मल्य निर्धारित कर दिया जाएगा ।

सहकारी बाजारों का स्थापना का जाए , – जिससे जमाखोरी और मुनाफाखोरी की समस्या दूर हो सके । मुनाफाखोर बिचौलियों को पूरी तरह समाप्त कर दिया जाएगा । रिश्वत का कीड़ा हमारे देश की नींव को निरन्तर खोखला कर रहा है ।

रिश्वतखोरों को इतनी कड़ी सजा दी जाएगी कि वे भविष्य में इस विषय में सोच भी न सकेंगे । इसके लिए न्याय और दण्ड – प्रक्रिया में भी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए जाएंगे ।

 

13- उपसंहार :

मैं केवल स्वप्न ही नहीं देखता , वरन् संकल्प और विश्वास के बल पर अपने देश को पूर्ण कल्याणकारी गणराज्य बनाने की योग्यता भी रखता हूँ । मैं चाहता हूँ कि मेरे देश के कमजोर , निर्धन , पीड़ित , शोषित और असहाय वर्ग के लोग चैन की साँस ले सकें और सुख की नींद सो सकें ।

मेरे शासन में प्रत्येक व्यक्ति के पास – रहने को मकान , करने को काम , पेट के लिए रोटी और पहनने के लिए वस्त्रों की व्यवस्था होगी । इस रूप में हमारा देश सही अर्थों में महान् और विकसित बन सकेगा ।

अगर आपको ये लेख Yadi Main Pradhan Mantri Hota पसंद आये तो शेयर जरूर करें |

गंगा नदी पर निबंध – गंगा की आत्मकथा

गंगा नदी पर निबंध – गंगा की आत्मकथा

Ganga Nadi Par Nibandh

गंगा नदी पर निबंध – गंगा की आत्मकथा

ये गंगा नदी पर निबंध विभिन्न बोर्ड जैसे UP Board, Bihar Board और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं को दृश्टिगत रखते हुए लिखा गया है, अगर आपके मन  सवाल हो तो comment लिख कर पूछ सकते हैं |

इस शीर्षक से मिलते-जुलते अन्य सम्बंधित शीर्षक –

  • गंगा तेरा पानी अमृत
  • मुक्तिदायिनी गंगा ।

गंगा नदी पर निबंध की  रूपरेखा 

  1. प्रस्तावना
  2. धरती पर अवतरित होने की महान् कथा
  3. मेरा उद्गम स्थल
  4. मेरी यात्रा – पथ
  5. उपसंहार

1- प्रस्तावना 

मुक्तिदा मानी गई है, स्वर्गदा गंगा नदी ।

जल नहीं , जल है सुधासम , सर्वथा सर्वत्र ही ॥

मेरा नाम गंगा है – पतितपावनी गंगा। मेरे किनारों पर बसे हए अनेक तीर्थ – स्थान एक ओर मेरी महिमा क गीत गात है तो दूसरा और अपनी पवित्रता के कारण जन – जन के मन को पावन कर देते हैं|

महाकवि कालिदास ने अपने ‘ गंगाष्टक ‘ में मेरी प्रशंसा करते हुए

नमस्तेऽस्तु गङ्गे त्वदङ्गप्रसङ्गाभुजङ्गास्तुरङ्गा कुरङ्गा प्लवङ्गा ।

अनङ्गारिरङ्गा ससङ्गा शिवाजा भुजङ्गाधिपाडा कृताङ्गा भवन्ति । ।

अर्थात हे गंगे ! तुम्हारे शरीर के संसर्ग से साँप, घोडे हिरण और बन्दर आदि भी कामारि शिव के समान वर्णवाल शिव के संगी और कल्याणमय शरीरवाले होकर, अंग में भजंगराजों को लपेटे हए सानन्द विचरते हैं ; अतः तुमको नमस्कार है।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने मेरी उज्ज्वल जलधारा का मनोहारी चित्रण करते हुए लिखा है,

नव उज्ज्वल जलधार हार हीरक – सी सोहति।

बिच – बिच छहरति बूंद मध्य मुक्ता मनि पोहति ॥

लोल लहर लहि पवन एक पै इक इमि आवत ।

जिमि नर – गन मन विविध मनोरथ करत मिटावत ॥

सुभग स्वर्ग सोपान सरिस सबके मन भावत ।

‘ दरसन मज्जन पान त्रिविध भय दर मिटावत । ।

वेदों के अनुसार मैं देवताओं की नदी हूँ । मैं पहले स्वर्ग में बहती थी । देवगण मेरे जल को अमृत कहते थे । एक दिन देवलोक से उतरकर मुझे पृथ्वी पर आना पड़ा । राजा सगर , के वंशजों की तप – परम्परा ने मुझे पृथ्वी पर आने के लिए विवश कर दिया ।

2- धरती पर अवतरित होने की महान् कथा

मेरे धरती पर आने की कहानी कम रोचक और रोमांचक नहीं है । बात बहुत पुरानी है ।

सगर नाम के एक प्रसिद्ध चक्रवर्ती राजा थे । उन्होंने सौ अश्वमेध यज्ञ पूरे कर लिए थे । अन्तिम यज्ञ के लिए जब उन्होंने श्यामवर्ण का अश्व ( घोड़ा ) छोड़ा तो इन्द्र का सिंहासन हिलने लगा । सिंहासन छिन जाने के भय से इन्द्र ने उस अश्व को चुरा लिया और कपिल मुनि के आश्रम में जाकर बाँध दिया ।

राजा सगर ने अपने साठ हजार पुत्रों को अश्व की खोज के लिए भेजा । पर्याप्त खोज के बाद वे कपिल मुनि के आश्रम पहुँचे । वहाँ पर अश्व को बंधा हुआ देखकर राजकुमारा ने महर्षि कपिल को अश्व चुरानेवाला समझकर उनका अपमान किया ।

क्रोधित कपिल मुनि ने सभी राजकुमारों को अपने शाप के प्रभाव से भस्म कर दिया । राजा सगर के पौत्र अंशुमान ने कपिल मुनि को प्रसन्न किया और उनसे अपने चाचाओं की मुक्ति का उपाय पूछा ।

मुनि ने बताया कि जब स्वर्ग से गंगा भूलोक पर उतरेगी और राजकुमारों की भस्म का स्पर्श करेगी तभी उनकी मुक्ति होगी । इसके बाद अंशुमान ने घोर तप किया, किन्तु वे सफल न हुए ।

राजा अंशुमान के पश्चात् उनके पुत्र दिलीप का अथक श्रम भी व्यर्थ गया । तदनन्तर दिलीप के पुत्र भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर मैंने पृथ्वी पर आना स्वीकार किया । इस प्रकार राजा सगर के साठ हजार पुत्रों का उद्धार करने के लिए मुझे पृथ्वी पर आना पड़ा ; क्योंकि भगीरथ मुझे पृथ्वी पर लाए थे , इसलिए मेरा नाम भागीरथी भी पड़ गया ।

3- मेरा उद्गम स्थल

हिमालय की गोद में एक एकान्त स्थान पर एक छोटी – सी घाटी बन गई है , जो लगभग डेढ़ किलोमीटर चौड़ी है । इस घाटी के चारों ओर बर्फ से ढके हुए ऊँचे – ऊँचे पर्वत – शिखर हैं । यहाँ बहुत अधिक ठण्ड पड़ती है ।

यहीं पर एक गुफा है ; जिसे गोमुख कहते हैं । यहीं से मेरा उद्गम होता है । गोमुख का अर्थ है – गाय  अथवा पृथ्वी का मुख । इस अँधेरी गुफा का आकार वास्तव में गाय के मुख के समान है । यह गुफा पर्याप्त ऊँची और चौड़ी है ।

कभी – कभी इसके किनारों से बर्फ के बड़े – बड़े टुकड़े टूटकर गिरते हैं और मैं अपने तेज बहाव में उन्हें बालू – मिश्रित घाटी की ओर ले जाती हूँ । जैसे – जैसे दोनों ओर की ढलानों पर बर्फ पिघलती है , छोटी – छोटी नदियाँ बनती जाती हैं और नीचे जाकर मुझमें मिल जाती हैं ।

4.  मेरी यात्रा – पथ 

गाती , नाचती , कूदती हुई मेरी धारा अब गंगोत्री के पास से गुजरती है । यह एक छोटा – सा तीर्थ – स्थान है । गंगोत्री के किनारों पर चट्टानें और पत्थर बिछे हैं । जिन पर से होकर बर्फ – सा ठण्डा मेरा जल किलोल करता हुआ बहता है ।

यह स्थान समुद्र की सतह से 6 , 000 मीटर ऊँचा है । धीरे – धीरे मैं बड़े पहाड़ों , ऊँचे – ऊँचे वृक्षों और सँकरे रास्तों से होकर छोटे – छोटे जल – स्रोतों का पानी एकत्र करती हुई आगे बढ़ती जाती हूँ ।

देवप्रयाग में मुझसे अलकनन्दा का मिलन होता है । यहाँ से मेरी गति और अधिक बढ़ गई है । । जहाँ मैं अपने पिता हिमराज की गोद से मैदान में उतरती हूँ वहाँ हरिद्वार का पुण्य तीर्थ बन गया है ।

हरिद्वार से कुछ ऊपर ऋषिकेश में एक बहुत सुन्दर स्थान है ; जिसे लक्ष्मण – झूला कहते हैं । यहाँ कुछ अत्यन्त प्राचीन और सुन्दर मन्दिर हैं और मेरे ऊपर झूलता हुआ एक विशाल पुल भी है ।

हरिद्वार से हजारों किलोमीटर की यात्रा करती हुई तथा प्रयाग और काशी के तटों को पवित्र – पावन बनाती हुई मेरी धारा बंगाल तक पहुँचती है । यहाँ श्रीचैतन्य महाप्रभु का जन्मस्थान और वैष्णवों का प्रसिद्ध तीर्थ ‘ नदिया ‘ है ।

इसी नगर के पास मेरा नया नामकरण हुआ है — हुगली । यहाँ मेरे दोनों किनारों पर नगर बसे हैं । एक ओर कोलकाता बसा है तो दूसरे किनारे पर हावड़ा । हुगली नदी के मुहाने के पास दक्षिण से आकर दामोदर नदी मुझमें मिल जाती है । यह मिलन – स्थल बड़ा मनोरम है । यहाँ का प्राकृतिक दृश्य देखते ही बनता है ।

13- उपसंहार :

मेरी कहानी बहुत लम्बी है । मन्दाकिनी , सुरसरि , विष्णुपदी , देवापगा , हरिनदी एवं भागीरथी आदि मेरे अनेक नाम हैं । मेरी स्तुति लिखकर कालिदास , भवभूति , भारवि , वाल्मीकि , तुलसी , पद्माकर आदि अनेक कवियों की लेखनी ने अपने – आपको धन्य समझा है ।

गोस्वामी तुलसीदास के शब्दों में “दरस परस अरु मज्जन पाना । कटहिं पाप कहँ बेद – पुराना ॥”

इस प्रकार प्रकृति के महान् प्रतीक हिमालय के विस्तृत हिमशिखरों से उदित होकर भारतवर्ष के विशाल वक्ष पर मुक्तामाला के समान लहराती हुई मैं भागीरथी गंगा भारत की प्रवाहमयी संस्कृति की पवित्र प्रतीक हूँ । .

अगर आपको ये लेख Ganga Nadi Par Nibandh पसंद आये तो शेयर जरूर करें |

भारतीय कृषि और किसान पर निबंध 

भारतीय कृषि और किसान पर निबंध 

Bhartiya Kisan Par Nibandh

भारतीय कृषि और किसान पर निबंध 

ये Bhartiya Kisan Par Nibandh विभिन्न बोर्ड जैसे UP Board, Bihar Board और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं को दृश्टिगत रखते हुए लिखा गया है, अगर आपके मन  सवाल हो तो comment लिख कर पूछ सकते हैं |

इस शीर्षक से मिलते-जुलते अन्य सम्बंधित शीर्षक –

  • भारतीय कृषि में विज्ञान का योगदान ( 2002 )
  • भारतीय किसान ( 2001 )
  • भारतीय कृषि
  • ग्रामीण विकास : भारतीय परिप्रेक्ष्य में ( 2004 )
  • ग्रामोत्थान की नवीन योजनाएँ
  • भारत का कृषि के क्षेत्र में विकास व पिछडापन
  • ग्रामीण – व्यवस्था और कृषक – जीवन ( 2010 )

भारतीय किसान पर निबंध  की  रूपरेखा 

  1. प्रस्तावना
  2. कृषकों की सामाजिक समस्याएँ
  3. आर्थिक समस्याएँ
  4. गाँवों की वर्तमान स्थिति
  5. भारत में कृषि की स्थिति
  6. भारतीय कृषि में विज्ञान का योगदान
  7. गाँवों के विकास हेतु नवीन योजनाएँ
  8. राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक
  9. कृषि अनुसन्धान और शिक्षा
  10. बागवानी 
  11. फसलों के मौसम
  12. उद्योगों के विकास में कृषि का योगदान
  13. उपसंहार

1- प्रस्तावना 

भारत एक कृषिप्रधान देश है । यहाँ की अधिकांश जनता ग्रामों में निवास करती है। यह कहना भी सर्वथा उचित ही प्रतीत होता है कि ग्राम ही भारत की आत्मा है, लेकिन रोजगार और अन्य सुविधाओं के कारण ग्रामीण शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं।

ग्रामीणों के इस पलायन को रोकने के लिए सरकार को गाँवों के विकास की ओर ध्यान देना होगा, अन्यथा इससे कृषि उत्पादन भी प्रभावित हो सकता है जिसके कारण खाद्यान्न संकट भी उत्पन्न हो सकता है ।

ग्राम भारतीय सभ्यता के प्रतीक हैं । भोजन एवं अन्य नित्यप्रति की आवश्यकताएँ गाँव ही पूर्ण करते हैं । भारत का औद्योगिक स्वरूप भी ग्रामीण कृषकों पर ही निर्भर है । वस्तुत : भारतीय अर्थव्यवस्था का मूल आधार ग्राम ही हैं । यदि गाँवों का विकास होगा तो देश भी समृद्ध होगा ।

2- कृषकों की सामाजिक समस्याएँ

विकास के इस युग में भी गाँवों में शिक्षा , स्वास्थ्य , मनोरंजन तथा परिवहन के साधनों की समुचित व्यवस्था नहीं हो सकी है , जिसके कारण भारतीय किसान को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है ।

वह साधनों के अभाव में अपने बच्चों के लिए शिक्षा का प्रबन्ध भी नहीं कर पा रहा है, जो उसके पिछड़ने का सबसे बड़ा कारण है। भारतीय किसान अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही सारे जीवन प्रयास करता रहता है । इसी कारण वह आधुनिक परिवेश से अछूता ही रहता है ।

3-  आर्थिक समस्याएँ

गाँवों के अधिकांश किसानों की आर्थिक स्थिति अत्यन्त शोचनीय है । उसकी उपज का उचित मूल्य उसे नहीं मिल पाता। धन के अभाव में वह अच्छी पैदावार भी नहीं ले पाता , जिसका प्रभाव सम्पूर्ण राष्ट्र के विकास पर पड़ता है ।

गाँवों में निर्धनता , भुखमरी और बेरोजगारी अपनी चरम सीमा पर है । कृषकों को कृषि से ‘ सम्बन्धित जानकारी सुगमता से सुलभ नहीं हो पाती ।

4. गाँवों की वर्तमान स्थिति

गाँवों में पक्की सड़कों का अभाव है । शिक्षा , स्वास्थ्य तथा मनोरंजन के साधनों का उपयुक्त प्रबन्ध नहीं है । बेरोजगारी अपने चरम पर है तथा संचार के समुचित साधनों , पेय – जल , उपयुक्त निर्देशन – एवं परामर्श सम्बन्धी सुविधाओं का अभाव है ।

5. भारत में कृषि की स्थिति

कृषि क्षेत्र में हमारी श्रमशक्ति का 64 प्रतिशत हिस्सा आजीविका प्राप्त कर रहा है और सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 26 प्रतिशत इसी क्षेत्र में मिलता है ।

देश के कुल निर्यात में कृषि का योगदान लगभग 18 प्रतिशत है । अनाज की प्रति व्यक्ति उपलब्धता सन् 2000 ई० में प्रतिदिन 467 ग्राम तक पहुंच गई जबकि पाँचवें दशक की शुरूआत में यह प्रति व्यक्ति 395 ग्राम प्रतिदिन थी ।

स्वतन्त्रता के पश्चात निरन्तर कषि उत्पादन में वद्धि दर्ज की गई है , लेकिन वर्ष 2002 में देश के अधिकांश हिस्सों में सूखा पड़ा , जिसके कारण 2001 -02 ई० के लिए कृषि उत्पादन के लिए लगाए गए सारे अनुमान बेकार हो गए । धान की परी फसल नष्ट हो गई , इसके बावजूद भी आज हम खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हैं ।

6. भारतीय कृषि में विज्ञान का योगदान

जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। पहले इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए अन्नपूर्ति करना असम्भव ही प्रतीत होता था, परन्तु आज हम अन्न के मामले में निर्भर हो गए हैं।

इसका श्रेय आधुनिक विज्ञान को ही है । विभिन्न प्रकार के उर्वरकों , बुआई – कटाई के निक साधनों , कीटनाशक दवाओं तथा सिंचाई के कृत्रिम साधनों ने खेती को अत्यन्त सुविधापूर्ण एवं सरल बना ता है । अन्न को सुरक्षित रखने के लिए भी अनेक नवीन उपकरणों का आविष्कार किया गया है ।

7. गाँवों के विकास हेतु नवीन योजनाएँ

गांव के विकास हेतु सरकार के द्वारा नवीन योजनाओं का शभारम्भ जा रहा है । पंचवर्षीय योजनाओं में गाँवों के विकास को महत्त्व दिया जा रहा है । गाँवों में परिवहन , विद्युत् , में दशक की शुरूआत में यह में देश के अधिकांश हिस्सों में सूखा हो हा आधुनिक कृषि यन्त्र ख जा रहे हैं ।

जगह – जगह तथा लए राष्ट्रीय – कृषि न , पयजल , शिक्षा आदि की व्यवस्था हेत व्यापक स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं । किसानों को उन्नत लिए विभिन्न योजनाओं के द्वारा प्रोत्साहित किया जा रहा है ।

आधुनिक कृषि यन्त्र खरीदने कार क अनुदान दिए जा रहे हैं । जगह – जगह कृषि अनुसन्धान केन्द्र खोले जा रहे हैं । किसानों के उत्थान के लिए राष्ट्रीय – कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना की गई है , जिस तथा ग्रामोद्योग को आर्थिक सहायता देकर प्रोत्साहित करना है ।

8. राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक

राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना सन् 1982 ई० सका उद्देश्य कृषि , लघु उद्योगों , कुटीर तथा ग्रामोद्योगों , दस्तकारियों और ग्रामीण क्षेत्रों में अन्य आर्थिक का प्रोत्साहन देने के लिए ऋण उपलब्ध कराना था , ताकि समेकित ग्रामीण विकास को प्रोत्साहन दिया ‘ जा सके और ग्रामीण क्षेत्रों को खशहाल बनाया जा सके ।

9.  कृषि अनुसन्धान और शिक्षा

कृषि अनुसन्धान और शिक्षा विभाग की स्थापना कृषि मन्त्रालय के अन्तर्गत सन् 1973 ई० में की गई थी । यह विभाग कृषि , पशुपालन और मत्स्यपालन के क्षेत्र में अनुसन्धान और शैक्षिक गतिविधियाँ संचालित करने के लिए उत्तरदायी है।

कृषि मन्त्रालय के कृषि अनुसन्धान और शिक्षा विभाग के प्रमुख संगठन ‘ भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद ने कृषि प्रौद्योगिकी के विकास , निवेश सामग्री तथा खाद्यान्न में आत्मनिर्भरता लाने के लिए प्रमुख वैज्ञानिक जानकारियों को आम लोगों तक पहुँचाने के मामले में प्रमुख भूमिका निभाई है ।

भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद की गतिविधियाँ मुख्य रूप से आठ विषयों में विभाजित हैं ; जैसे – फसल विज्ञान , बागवानी , मृदा कृषि विज्ञान और वानिकी , कृषि इंजीनियरी , पशु विज्ञान , मत्स्यिकी कृषि विस्तार और कृषि शिक्षा ।

10. बागवानी 

भारत की जलवायु और मृदा में व्यापक भिन्नता पाई जाती है , जो विविध प्रकार की बागवानी फसलों ; जैसे फलों , सब्जियों , कन्द फसलों , सजावटी पौधे , औषधीय पौधे , मसालें तथा रोपण फसलों ; जैसे नारियल , काजू , सुपारी आदि की खेती के लिए काफी उपयुक्त है ।

भारत अब नारियल , सुपारी , काजू , अदरक , हल्दी तथा काली मिर्च का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया है ।

11. फसलों के मौसम

भारत में मोटेतौर पर तीन फसलें होती हैं – खरीफ , रबी और जायद की फसल । खरीफ के मौसम में मुख्य रूप से धान , ज्वार , बाजरा , मक्का , कपास , तिल , सोयाबीन और मूंगफली की खेती की जाती है ।

रबी की फसल में गेहूँ , ज्वार , चना , अलसी , तोरिया और सरसों उगाई जाती हैं । जायद की फसलों में खरबूजा , तरबूज , ककड़ी , लौकी आदि फसलें उगाई जाती हैं ।

12. उद्योगों के विकास में कृषि का योगदान

सन् 1947 ई० में स्वतन्त्रता – प्राप्ति के बाद से भारत औद्योगिक विकास के मार्ग पर अग्रसर हुआ । औद्योगिक विकास में कृषि का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। अनेक उद्योगों के लिए कच्चा माल कृषि से ही प्राप्त होता है। वस्त्र उद्योग , कागज उद्योग , रबड़ उद्योग तथा चीनी उद्योग पूर्णरूपेण कृषि पर ही निर्भर हैं ।

कृषि – उपज बढ़ाने के लिए समय – समय पर कृषकों को प्रोत्साहित किया तो जाता है , लेकिन उनकी उपज का उचित मल्य उन्हें नहीं मिल पाता , जिसके कारण किसान वैज्ञानिक कषि यन्त्रों का प्रयोग नहीं कर पाते ।

कषि के वैज्ञानिक यन्त्रों के अभाव में किसान उद्योगों के लिए पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल तैयार नहीं कर पाते , जिसका प्रभाव उद्योगों के विकास पर पड़ता है । इसलिए औद्योगिक विकास के लिए यह आवश्यक है कि किसान को ।

उसकी उपज का उचित मूल्य मिले , ताकि किसान भी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो सके और वैज्ञानिक कृषि यन्त्रों का प्रयोग करके उत्पादन में वृद्धि कर सके ।

13- उपसंहार :

देश की समृद्धि के लिए ग्रामोत्थान आवश्यक है । सरकार ने भी ग्रामों के विकास के लिए सार्थक पहल की है । ग्रामीण क्षेत्रों में अब सड़कों , शिक्षा , चिकित्सा , दूर – संचार , लघु – उद्योग , विद्यत तथा परिवहन व्यवस्था का प्रसार किया जा रहा है ।

कृषकों को उन्नत बीज , खाद तथा आधुनिक कृषि यन्त्र खरीदने के लिए ऋण के रूप में अनदान दिए जाते हैं तथा प्रत्येक क्षेत्र में किसानों को प्रोत्साहित किया जाता है । आशा है कि निकट भविष्य में कृषक आत्मनिर्भर होकर भारत को समृद्ध करने में पूर्ण योगदान देंगे ।

अगर आपको ये लेख भारतीय कृषि और किसान पर निबंध पसंद आये तो शेयर जरूर करें |