रामवृक्ष बेनीपुरी का जीवन परिचय
रामवृक्ष बेनीपुरी (23 दिसंबर, 1902 – 7 सितंबर, 1968 ) हिन्दुस्तान के एक महान विचारक, चिन्तक, मननकर्ता क्रान्तिकारी पत्रकार, साहित्यकार और संपादक थे। वे हिन्दी साहित्य के शुक्लोत्तर युग के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। इस पोस्ट में हम Jeevan Parichay of Rambriksh Benipuri in Hindi के बारे में जानेंगे | इस पोस्ट में आपको rambriksh benipuri ka janm kab hua tha का जबाब भी मिलेगा |
अन्य जीवन परिचय :
Jeevan Parichay of Rambriksh Benipuri in Hindi :
रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म सन् 1902 ई० में बिहार स्थित मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर गाँव में हुआ था । इनके पिता श्री फलवन्त सिंह एक साधारण किसान थे बचपन में ही इनके माता – पिता का देहावसान हो गया और इनका लालन – पालन इनकी मौसी की देखरेख में हुआ ।
इनकी प्रारम्भिक शिक्षा बेनीपुर में ही हुई । बाद में इनकी शिक्षा इनके ननिहाल में भी हुई । मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के पूर्व ही सन् 1920 इन्होंने अध्ययन छोड़ दिया और महात्मा गाँधी के नेतृत्व में प्रारम्भ हुए असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े ।\
बाद में हिन्दी साहित्य सम्मेलन से ‘ विशारद ‘ की परीक्षा उत्तीर्ण की। ये राष्ट्रसेवा के साथ – साथ साहित्य की भी साधना करते रहे । साहित्य की ओर इनकी रुचि । ‘ रामचरितमानस ‘ के अध्ययन से जागृत हुई । पन्द्रह वर्ष की आयु से ही ये पत्र – पत्रिकाओं में लिखने लगे थे । देश – सेवा के परिणामस्वरूप इनको अनेक वर्षों तक जेल की यातनाएँ भी सहनी पड़ी । सन् 1968 में इनका निधन हो गया ।
रामवृक्ष बेनीपुरी भाषा शैली :
बेनीपुरी जी की भाशा-शैली नितान्त मौलिक है। इनकी भाषा व्यावहारिक है और बेनीपुरी का गद्य हिन्दी की प्रकृति के सर्वथा अनुकूल है , बातचीत के करीब है शब्द-चयन चमत्कारिक है। बेनीपुरी जी के गद्य – साहित्य में गहन अनुभूतियों एवं उच्च कल्पनाओं की स्पष्ट झाँकी मिलती है । भाषा में ओज है ।
इनकी खड़ीबोली में कुछ आंचलिक शब्द भी आ जाते हैं , किन्तु इन प्रांतीय शब्दों से भाषा के प्रवाह में कोई विघ्न नहीं उपस्थित होता । भाषा के तो ये ‘ जादूगर ‘ माने जाते हैं । इनकी भाषा में संस्कृत , अंग्रेजी और उर्दू के प्रचलित शब्दों का प्रयोग हुआ है । भाषा को सजीव , सरल और प्रवाहमयी बनाने के लिए मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग भी किया है ।
इनकी रचनाओं में विषय के अनुरूप विविध शैलियों के दर्शन होते हैं । शैली में विविधता है । कहीं चित्रोपम शैली , कहीं डायरी शैली , कहीं नाटकीय शैली । किन्तु सर्वत्र भाषा में प्रवाह एवं ओज विद्यमान है । वाक्य छोटे होते हैं किन्तु भाव पाठकों को विभोर कर देते हैं ।
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बेनीपुरी जी बहुमुखी प्रतिभावाले लेखक हैं । इन्होंने गद्य की विभिन्न विधाओं को अपनाकर विपुल मात्रा में साहित्य की सृष्टि की। पत्रकारिता से ही इनकी साहित्य – साधना का प्रारम्भ हुआ । साहित्य – साधना और देशभक्ति दोनों ही इनके प्रिय विषय रहे हैं । इनकी रचनाओं में कहानी , उपन्यास , नाटक , रेखाचित्र , संस्मरण , जीवनी , यात्रावृत्तान्त , ललित लेख आदि के अच्छे उदाहरण मिल जाते हैं।
मुहावरे एवं कहावतों का प्रयोग भी इन्होंने किया है। ये एक राजनीतिक एवं समाजसेवी व्यक्ति थे। विधानसभा , सम्मेलन , किसान सभा , राष्ट्रीय आन्दोलन , विदेश – यात्रा , भाषा – आन्दोलन आदि के बीच में रमे रहते हुए भी इनका साहित्यकार व्यक्तित्व हिन्दी साहित्य को अनेक सुन्दर ग्रंथ दे गया है । छोटे-छोटे वाक्य गहरी अर्थाभिव्यक्ति के कारण बहुत तीखी चोट करते हैं।
इनकी अधिकांश रचनाएँ जेल में लिखी गयी हैं किन्तु इनका राजनीतिक व्यक्तित्व इनके साहित्यकार व्यक्तित्व को दबा नहीं सका । इनकी शैली की विशिष्टताएं कई हैं जो इनके हर लेखन में मिलती हैं ।
शैली :
- आलोचनात्मक
- वर्णनात्मक
- भावात्मक
- प्रतीकात्मक
- आलंकारिक
- वर्यग्यात्मक
- चित्रात्मक शैलियों दर्शन होते हैं।
भाषा :
- सरल
- बोधगम्य
- प्रवाहयुक्त खड़ीबोली।
रामवृक्ष बेनीपुरी की रचनाएँ :
बेनीपुरी जी ने उपन्यास , नाटक , कहानी , संस्मरण , निबंध , रेखाचित्र आदि सभी गद्य – विधाओं पर अपनी कलम उठायी ।
Rambriksh Benipuri in Hindi Books
रामवृक्ष बेनीपुरी नाटक
- अम्बपाली -1941-46
- सीता की माँ -1948-50
- संघमित्रा -1948-50
- अमर ज्योति -1951
- तथागत
- सिंहल विजय
- शकुन्तला
- रामराज्य
- नेत्रदान -1948-50
- गाँव के देवता
- नया समाज
- विजेता -1953.
- बैजू मामा, नेशनल बुक ट्र्स्ट
- शमशान में अकेली अन्धी लड़की के हाथ में अगरबत्ती
संस्मरण तथा निबन्ध
- पतितों के देश में -1930-33
- चिता के फूल -1930-32
- लाल तारा -1937-39
- कैदी की पत्नी -1940
- माटी की मूरत -1941-45 (रेखाचित्र)
- गेहूँ और गुलाब – 1948–50
- जंजीरें और दीवारें
- उड़ते चलो, उड़ते चलो
- मील के पत्थर
सम्पादन एवं आलोचन
- बालक
- तरुण भारती
- युवक
- किसान – मित्र
- कैदी
- योगी
- जनता
- हिमालय
- नयी धारा
- चुन्नू – मुन्नू ।
यात्रा – वर्णन
- पैरों में पंख बाँधकर।
बेनीपुरी जी के सम्पूर्ण साहित्य को बेनीपुरी ग्रंथावली नाम से दस खण्डों में प्रकाशित कराने की योजना थी , जिसके कुछ खण्ड प्रकाशित हो सके । निबंधों और रेखाचित्रों के लिए इनकी ख्याति सर्वाधिक है ।
माटी की मूरत इनके श्रेष्ठ रेखाचित्रों का संग्रह है जिसमें बिहार के जन – जीवन को पहचानने के लिए अच्छी सामग्री है । कुल 12 रेखाचित्र । हैं और सभी एक – से – एक बढ़कर हैं ।