Mehangai Par Nibandh

महँगाई पर निबंध

ये Mehangai Par Nibandh  विभिन्न बोर्ड जैसे UPBoard, Bihar Board और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं को दृश्टिगत रखते हुए लिखा गया है, अगर आपके मन  सवाल हो तो comment लिख कर पूछ सकते हैं |

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  • बढ़ते मूल्यों की समस्या
  • महँगाई : समस्या और समाधान
  • मूल्यवृद्धि : कारण , परिणाम और निदान
  • महँगाई और आटा – दाल आदि के भाव
  • महँगाई तथा बढ़ती आवश्यकताएँ ( 2010 )

“हमारी चालीस प्रतिशत जनता अभी भी गरीबी के स्तर से नीचे अपना जीवन बिता रही है और महंगाई इतनी अधिक बढ़ गई है , जितनी पहले कभी नहीं बढी थी ।” – वी० वी० गिरि 

‘महंगाई दर के नीचे रहने से जमा दर कम रहने के बावजूद एक आम पेंशनभोगी अपने मूलधन और उस पर मिलने वाले ब्याज से अधिक डोसा खरीद सकता है। आम लोगों की बचत को महंगाई के दीमक से बचाना रिजर्व बैंक की प्राथमिकता है।’रघुराम राजन

Aarakshan Par Nibandh की  रूपरेखा 

  1. प्रस्तावना
  2. महँगाई के कारण
  3. महंगाई के फलस्वरूप उत्पन्न होनेवाली कठिनाइयाँ 
  4. महँगाई को दूर करने के लिए सुझाव
  5. उपसंहार

1- प्रस्तावना 

भारत की आर्थिक समस्याओं के अन्तर्गत महँगाई की समस्या एक प्रमुख समस्या है । वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि का क्रम इतना तीव्र है कि आप जब किसी वस्तु को दोबारा खरीदने जाते हैं , वस्तु का मूल्य पहले से अधिक बढ़ा हुआ होता है । दिन – दूनी रात चौगनी बढती इस महँगाई की मार का वास्तविक चित्रण प्रसिद्ध हास्य कवि काका हाथरसी की इन पंक्तियों में हुआ है –

पाकिट में पीड़ा भरी कौन सुने फरियाद ?

यह महँगाई देखकर वे दिन आते याद । ।

वे दिन आते याद , जेब में पैसे रखकर ,

सौदा लाते थे बजार से थैला भरकर ॥

धक्का मारा युग ने मुद्रा की क्रेडिट में , . . .

थैले में रुपये हैं . सौदा है पाकिट में ।

इसी प्रकार ये हिंदी फिल्म में महंगाई को प्रदर्शित करते हुए गाना गाया-

“सखी सइंया तो खूब ही कमात है

महंगाई डायन खाये जात है “

2- महँगाई के कारण

वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि अर्थात् महँगाई के बहुत – से कारण हैं । इन कारणों में अधिकांश कारण आर्थिक हैं । कुछ कारण ऐसे भी हैं , जो सामाजिक एवं राजनैतिक व्यवस्था से सम्बन्धित हैं । इन कारणों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है

( क ) जनसंख्या में तेजी से वृद्धि – भारत में जनसंख्या के विस्फोट का वस्तुओं की कीमतों को बढ़ाने बहुत अधिक योगदान है। जितनी तेजी से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है, उतनी तेजी से वस्तुओं का उत्पादन नहीं हो रहा है। इसका स्वाभाविक परिणाम यह हुआ है कि अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों में निरन्तर वृद्धि हुई है ।

( ख ) कृषि उत्पादन – व्यय में वृद्धि – हमारा देश कृषिप्रधान है, यहाँ की अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर है । विगत वर्षों से खेती में काम आनेवाले उपकरणों , उर्वरकों आदि के मूल्यों में वृद्धि हुई है । परिणामतः उत्पादित वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि होती जा रही है । अधिकांश वस्तुओं के मूल्य प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कृषि – पदार्थों के मूल्यों से सम्बद्ध होते हैं । इस कारण जब कृषि – मूल्य में वृद्धि हो जाती है तो देश में अधिकांश वस्तुओं के मूल्य अवश्यमेव प्रभावित होते हैं ।

( ग ) जमाखोरी में वृद्धि – वस्तुओं का मूल्य माँग और पूर्ति पर आधारित है । जब बाजार में वस्तुओं की पूर्ति कम हो जाती है तो उनके मूल्य बढ़ जाते हैं । अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से भी व्यापारी वस्तुओं का कृत्रिम अभाव पैदा कर देते हैं , जिसके कारण महँगाई बढ़ जाती है ।

( घ ) मुद्रा प्रसार – जैसे – जैसे देश में मुद्रा प्रसार बढ़ता जाता है । वैसे – वैसे महँगाई भी बढ़ती चली जाती है । तृतीय पंचवर्षीय योजना के समय से ही हमारे देश में मुद्रा – प्रसार की स्थिति रही है, परिणामतः वस्तुओं के मल्य बढ़ते ही जा रहे हैं । कभी जो वस्तु एक रुपये में मिला करती थी ; उसके लिए अब सौ रुपये तक खर्च करने पड़ जाते हैं ।

( च ) प्रशासन में शिथिलता – सामान्यतः प्रशासन के स्वरूप पर ही देश की अर्थव्यवस्था निर्भर करती है । यदि प्रशासन शिथिल पड़ जाता है तो मूल्य बढ़ते जाते हैं ; क्योकि कमजोर प्रशासन व्यापारी – वर्ग पर नियन्त्रण नहीं रख पाता । ऐसी स्थिति में कीमतों में अनियन्त्रित और निरन्तर वृद्धि होती रहती है ।

( छ ) असंगठित उपभोक्ता – वस्तुओं का क्रय करनेवाला उपभोक्ता वर्ग प्रायः असंगठित होता है . जबकि विक्रेता या व्यापारिक संस्थाएँ अपना संगठन बना लेती हैं । ये संगठन इस बात का निर्णय करते हैं कि वस्तुओं का मूल्य क्या रखा जाए और उन्हें कितनी मात्रा में बेचा जाए । जब सभी सदस्य इन नीतियों का पालन करते हैं तो वस्तओं मल्यों में वद्धि होने लगती है । वस्तुओं के मूल्यों में होनेवाली इस वृद्धि से उपभोक्ताओं को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

( ज ) धन का असमान वितरण – हमारे देश में आर्थिक साधनों का असमान वितरण महँगाई का मुख्य कारण है । जिनके पास पर्याप्त धन है . वे लोग अधिक पैसा देकर साधनों और सेवाओं को खरीद लेते हैं । व्यापारी धनवानों की इस प्रवृत्ति का लाभ उठाते हैं और महंगाई बढ़ती जाती है । वस्तुत : विभिन्न सामाजिक – आर्थिक विषमताओं एवं समाज में व्याप्त अशान्तिपूर्ण वातावरण का अन्त करने के लिए धन का समान वितरण होना आवश्यक है ।

कविवर दिनकर के शब्दों में भी

शान्ति नहीं तब तक , जब तक ?

सुख भाग न नर का सम हो,

नहीं किसी को बहुत अधिक हो

नहीं किसी को कम हो।

(झ) घाटे का बजट – योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु सरकार को बड़ी मात्रा में पूँजी की व्यवस्था करनी पडती है। पूंजी की व्यवस्था के लिए सरकार अन्य उपायों के अतिरिक्त घाटे की बजट – प्रणाली को भी अपनाती है । घाटे की यह पूर्ति नए नोट छापकर की जाती हैं । परिणामत : देश में मुद्रा की पूर्ति आवश्यकता से अधिक हो जाती है। जब ये नोट बाजार में पहुँचते हैं तो वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि करते हैं ।

3- महंगाई के फलस्वरूप उत्पन्न होनेवाली कठिनाइयाँ

महँगाई नागरिकों के लिए अभिशापस्वरूप है । हमारा देश एक गरीब देश है, यहाँ की अधिकांश जनसंख्या के आय के साधन सीमित हैं । इस कारण साधारण नागरिक और कमजोर वर्ग के व्यक्ति अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाते। बेरोजगारी इस कठिनाई को और भी अधिक जटिल बना देती है।

व्यापारी अपनी वस्तुओं का कृत्रिम अभाव उत्पन्न कर देते हैं । इसके कारण वस्तुओं के मूल्यों में अनियन्त्रित वृद्धि हो जाती है । परिणामतः कम आयवाले व्यक्ति बहुत – सी वस्तुओं और सेवाओं से वंचित रह जाते हैं । महँगाई के बढ़ने से कालाबाजारी को प्रोत्साहन मिलता है ।

व्यापारी अधिक लाभ कमाने के लिए वस्तुओं को अपने गोदामों में छिपा देते हैं । महँगाई बढ़ने से देश की अर्थव्यवस्था कमजोर हो जाती है । कल्याण एवं विकास सम्बन्धी योजनाओं के लिए पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं हो पाते । विकास के लिए जो साधन उपलब्ध होते भी हैं , वे अपर्याप्त होते हैं ; परिणामत : देश प्रगति की दौड़ में पिछड़ता जाता है । ।

4- महँगाई को दूर करने के लिए सुझाव (Mehangai Par Nibandh par sujhav)

यदि महँगाई इसी दर से ही बढ़ती रही तो देश के आर्थिक विकास में बहुत बड़ी बाधा उपस्थित हो जाएगी । इससे अनेक प्रकार की सामाजिक बुराइयाँ जन्म लेंगी; अत : महँगाई के इस दानव को समाप्त करना परम आवश्यक है । महँगाई को दूर करने के लिए सरकार को समयबद्ध कार्यक्रम बनाने होंगे।

किसानों को सस्ते मूल्य पर खाद , बीज और उपकरण आदि उपलब्ध कराने होंगे , जिससे कृषि – उत्पादनों के मूल्य कम हो सकें । मुद्रा – प्रसार को रोकने के लिए घाटे के बजट की व्यवस्था समाप्त करनी होगी अथवा घाटे को पूरा करने के लिए नए नोट छापने की प्रणाली को बन्द करना होगा । जनसंख्या की वृद्धि को रोकने के लिए निरन्तर प्रयास करने होंगे ।

सरकार को इस बात का भी प्रयास करना होगा कि शक्ति और साधन कुछ विशेष लोगों तक सीमित न रह जाएँ और धन का उचित अनुपात में बँटवारा हो सके । सहकारी वितरण संस्थाएँ इस दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं । इन सबके लिए प्रशासन को चुस्त व दुरुस्त बनाना होगा और कर्मचारियों को पूरी निष्ठा तथा कर्त्तव्यपरायणता के साथ कार्य करना होगा ।

7- उपसंहार :

महँगाई की वृद्धि के कारण हमारी अर्थव्यवस्था में अनेक प्रकार की जटिलताएँ उत्पन्न हो गई हैं । घाटे की अर्थव्यवस्था ने इस कठिनाई को और अधिक बढ़ा दिया है । यद्यपि सरकार की ओर से प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में किए जानेवाले प्रयासों द्वारा महँगाई की इस प्रवृत्ति को रोकने का निरन्तर प्रयास किया जा रहा है , तथापि इस दिशा में अभी तक पर्याप्त सफलता नहीं मिल सकी है ।

यदि समय रहते महँगाई के इस दानव को वश में नहीं किया गया तो हमारी अर्थव्यवस्था छिन्न – भिन्न हो जाएगी और हमारी प्रगति के सारे मार्ग बन्द हो जाएंगे . भ्रष्टाचार अपनी जड़ें जमा लेगा और नैतिक मूल्य पूर्णतया समाप्त हो जाएंगे।

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