Hindi Writing Letter Format 

Hindi Letter Writing – पत्र लेखन

आधुनकि युग में पत्र-लेखन एक कला है, इसलिए पत्र लिखते समय पत्र में सहज, सरल तथा सामान्य बोलचाल की भाषा का प्रयोग करना ही सर्वथा उचित होता है, इससे लाभ ये होता है कि पत्र को प्राप्त करने वाला पत्र में व्यक्त भावों और पत्र के उद्देश्य को अच्छी प्रकार से समझ सके और उसका उत्तर दे सके।

पत्र-लेखन ऐसी कला है जिससे हम अपने भावों और विचारों को सहज रूप से व्यक्त कर सकते हैं।  जिन बातों को प्रदर्शित करने में लोग हिचकिचाते हैं, उन बातों को पत्रों के माध्यम से आसानी से समझाया या कहा जा सकता है।

पत्र की आवश्यकता क्यों है?

अब बात आती है कि पत्र की आवश्यकता क्यों पड़ती है, पत्र अपने से दूर रहने वाले अपने सबंधियों अथवा मित्रों की कुशलता जानने के लिए और अपनी कुशलता का समाचार देने के लिए पत्र लिखे जाते हैं। भले ही आजकल हमारे पास बातचीत करने के लिए और कुशलछेम पूछने के लिए अनेक आधुनिक साधन उपलब्ध हैं, जैसे- टेलीफ़ोन, मोबाइल फ़ोन, ईमेल आदि।

प्रश्न यह उठता है कि फिर भी पत्र-लेखन सीखना क्यों आवश्यक है? पत्र लिखना महत्वपूर्ण ही नहीं अत्यंत आवश्यक भी है, फ़ोन आदि पर बातचीत अस्थायी होती है, इसके विपरीत लिखित दस्तावेज स्थायी रूप ले लेता है। उदाहरण- जब आप विद्यालय नहीं जा पाते, तब अवकाश के लिए प्रार्थना पत्र लिखना पड़ता है।

Types of Letter in Hindi (Letter In Hindi Format)- पत्रों के प्रकार 

मुख्य रूप से पत्रों को लेखन के आधार पर निम्न दो भागों में विभाजित किया जा सकता है –

  1.  औपचारिक-पत्र (Formal Letter)
  2.  अनौपचारिक-पत्र (Informal Letter)
औपचारिक पत्र किसे कहते हैं? ( What is formal letter in Hindi )

उनलोगों को लिखा जाने वाला पत्र औपचारिक पत्र कहलाता है जिनसे हमारा कोई निजी संबंध ना हो। औपचारिक पत्रों को केवल किसी विशेष कार्य से सम्बंधित तथ्यों पर ही केंद्रित रखा जाता है।

व्यवसाय से संबंधी, प्रधानाचार्य को लिखे प्रार्थना पत्र, आवेदन पत्र, सरकारी विभागों को लिखे गए पत्र, संपादक के नाम पत्र आदि औपचारिक-पत्र के उदहारण (example of formal letter ) हैं।

हमें Hindi Writing Letter के औपचारिक पत्र लेखन में मुख्य रूप से संदेश, सूचना एवं तथ्यों को अधिक महत्व देना पड़ता है। इसमें कम से कम शब्दों में अपनी बात को पूरा करते हुए सन्दर्भ को स्पष्ट करना पड़ता है, अर्थात पत्र प्राप्त करने वालों को बात आसानी से समझ आये ऐसी भाषा का प्रयोग तथा स्वतः पूर्णता अर्थात पूरी बात एक ही पत्र में कहने की अपेक्षा की जाती है।

 औपचारिक-पत्र के प्रकार (Types of formal letter)

औपचारिक-पत्र को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

(1) प्रार्थना-पत्र – जिन पत्रों में निवेदन, आग्रह अथवा प्रार्थना की जाती है, वे ‘प्रार्थना-पत्र’ कहलाते हैं। प्रार्थना पत्र में अवकाश, शिकायत, सुधार, आवेदन आदि के लिए लिखे गए पत्र आते हैं। ये पत्र प्रायः स्कुल के प्रधानाचार्य से लेकर किसी सरकारी विभाग के अधिकारी को भी लिखे जा सकते हैं।

(2) कार्यालयी-पत्र – जो पत्र कार्यालयी काम-काज के लिए लिखे जाते हैं, वे ‘कार्यालयी-पत्र’ कहलाते हैं। ये सरकारी अफसरों या अधिकारियों, स्कूल और कॉलेज के प्रधानाध्यापकों और प्राचार्यों को लिखे जाते हैं। इन पत्रों में डाक अधीक्षक, समाचार पत्र के सम्पादक, परिवहन विभाग, थाना प्रभारी, स्कूल प्रधानाचार्य आदि को लिखे गए पत्र आते हैं।

(3) व्यवसायिक-पत्र – व्यवसाय में सामान खरीदने व बेचने अथवा रुपयों के लेन-देन के लिए जो पत्र लिखे जाते हैं, उन्हें ‘व्यवसायिक-पत्र’ कहते हैं। इन पत्रों में दुकानदार, प्रकाशक, व्यापारी, कंपनी आदि को लिखे गए पत्र आते हैं।

औपचारिक-पत्र लिखते समय ध्यान रखने योग्य बातें –
  1. औपचारिक-पत्र लेखन नियमों में बंधे हुए होते हैं।
  2. इस प्रकार के पत्रों में भाषा का प्रयोग करते समय बहुत ही सावधानी रखनी पड़ती है। इसमें अनावश्यक बातों (कुशल-मंगल समाचार आदि) का उल्लेख नहीं किया जाता।
  3. जब आप पत्र लिख रहे हों तो ध्यान रखें कि आरंभ व अंत प्रभावशाली होना चाहिए।
  4. सदैव पत्र की भाषा-सरल, लेख-स्पष्ट व सुंदर होना चाहिए।
  5. यदि आप विद्यार्थी है और कक्षा अथवा परीक्षा भवन से पत्र का प्रारूप लिख रहे हैं, तो अपने वास्त्विक नाम और पता के स्थान पर क० ख० ग०, विद्यालय का नाम लिखना चाहिए।
  6. पत्र प्रारम्भ करने से पहले पृष्ठ के बाई ओर हसिया छोड़ना चाहिए और इस हाशिए (Margin Line) के साथ मिलाकर लिखना चाहिए।
  7. औपचारिक पत्र को एक पृष्ठ में ही लिखने और समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए, जिससे पत्र के विषय की तारतम्यता/लयबद्धता बनी रहे।
  8. प्रधानाचार्य को पत्र लिखते समय प्रेषक के स्थान पर अपना नाम, कक्षा व दिनांक लिखना चाहिए।
औपचारिक-पत्र (प्रारूप) के निम्नलिखित सात अंग होते हैं – (Elements of formal letter)
  1.  प्रारम्भ : सबसे पहले पृष्ठ के बाएं कोने पर ऊपर ‘सेवा में’ लिख कर, फिर पंक्ति बदल कर कुछ स्थान छोड़ कर पत्र प्रापक का पदनाम तथा पता लिख कर पत्र की शुरुआत करें।
  2. विषय – यह बहुत ही महत्वपूर्ण है की आप किस विषय में ध्यानकर्षण करना चाहते है, उसे केवल एक ही वाक्य में शब्द-संकेतों प्रदर्शित कर दें ।
  3.  संबोधन – जिसे पत्र लिखा जा रहा है, उसके लिए महोदय/महोदया, माननीय आदि शिष्टाचारपूर्ण शब्दों का प्रयोग करना सर्वथा उचित रहता है।
  4.  विषय-वस्तु– इसे दो अलग-अलग अनुच्छेदों में लिखना चाहिए-
  5. पहला अनुच्छेद – “सविनय निवेदन यह है कि” से वाक्य आरंभ करना चाहिए, फिर अपनी समस्या के बारे में लिखें।
  6. दूसरा अनुच्छेद –आपसे विनम्र निवेदन है कि” लिख कर आप उनसे क्या अपेक्षा है या कह सकते हैं कि आप क्या अनुरोध कर रहे हैं, उसे लिखें।
  7. हस्ताक्षर व नाम- धन्यवाद या कष्ट के लिए क्षमा जैसे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए और अंत में भवदीय, भवदीया, प्रार्थी लिखकर अपने हस्ताक्षर करें तथा उसके नीचे अपना नाम लिखें। (सबसे नीचे दाएं तरफ)
  8. प्रेषक का पता- शहर का मुहल्ला/इलाका, शहर, पिनकोड आदि।
  9.  दिनांक।
अन्य ध्यान योग्य बातें :
औपचारिक पत्र लेखन में अन्य ध्यानयोग्य बातें जिससे ये प्रभावशाली पत्र लेखन किया जा सकता है :-
  • औपचारिक-पत्र की प्रशस्ति (आरम्भ में लिखे जाने वाले आदरपूर्वक शब्द), अभिवादन व समाप्ति में किन शब्दों का प्रयोग करना चाहिए-

प्रशस्ति (आरम्भ में लिखे जाने वाले आदरपूर्वक शब्द) – श्रीमान, श्रीयुत, मान्यवर, महोदय आदि।

  • अभिवादन – औपचारिक-पत्रों में अभिवादन नहीं लिखा जाता।
  • समाप्ति – आपका आज्ञाकारी शिष्य/आज्ञाकारिणी शिष्या, भवदीय/भवदीया, निवेदक/निवेदिका, शुभचिंतक, प्रार्थी आदि।

अनौपचारिक पत्र किसे कहते हैं :

अनौपचारिक पत्र किसे कहते हैं (What is informal letter in Hindi )-

अनौपचारिक पत्र को हम व्यक्तिगत पत्र भी कहते हैं | अनौपचारिक पत्र उन व्यक्तियों को लिखे जाते हैं, जिनसे पत्र लेखक का व्यक्तिगत या निजी सम्बन्ध होता है।

अपने मित्रों, माता-पिता, अन्य सगे सम्बन्धियों को लिखे जाने वाले पत्रों को अनौपचारिक-पत्रों की श्रेणी में रखे जाते हैं। अनौपचारिक पत्रों में व्यक्तिगत तथ्यों का उल्लेख करते हुए आत्मीयता का भाव प्रकट करना होता है। इस तरह के पत्र लेखन में लेखक व्यक्तिगत बातों को पूछता है और अपनी निजी बातें बताता है |

अनौपचारिक-पत्र के प्रकार (types of informal letter)

अनौपचारिक पत्रों में निम्नलिखित प्रकार के पत्र रखे जा सकते है-

  • बधाई पत्र
  • विशेष अवसरों पर लिखे गये पत्र
  • सांत्वना पत्र
  • किसी प्रकार की जानकारी देने के लिए
  • कोई सलाह आदि देने के लिए
  • शुभकामना पत्र
  • निमंत्रण पत्र
अनौपचारिक-पत्र लिखते समय ध्यान रखने योग्य बातें :
  • भाषा सरल व स्पष्ट और मृदुभाषी होनी चाहिए।
  • अनौपचारिक पत्र लिखते समय लेखक तथा प्राप्तकर्ता की आयु, योग्यता, पद आदि का ध्यान रखते हुए शब्दों का चयन करना चाहिए।
  • पत्र लेखन में विषय भले ही बड़ा हो लेकिन उसे कम से कम बातों में स्पष्ट कर देना चाहिए।
  • पत्र में सुस्पष्ट लेखनी होनी चाहिए।
  • लेखन में सदैव ध्यान रखे कि आरंभ व अंत प्रभावशाली होना चाहिए, और इसे अच्छे शब्दों का प्रयोग करके बना सकते हैं।
  • पत्र प्रेषक व प्रापक वाले का पता साफ व स्पष्ट लिखा होना चाहिए।
  • अपना पता और दिनांक लिखने के बाद एक पंक्ति छोड़कर आगे लिखना चाहिए।
  • यदि आप छात्र है और कक्षा/परीक्षा भवन से पत्र लिख रहे हैं तो, अपने नाम के स्थान पर क० ख० ग० तथा पते के स्थान पर कक्षा/परीक्षा भवन लिखना चाहिए।
  • एक अच्छे पत्र में त्रुटि का कोई स्थान नहीं होता है इसलिए पत्र में काट छांट नही होनी चाहिए।
अनौपचारिक पत्रों का प्रारूप –

1. प्रेषक परिचय और पता-  ऊपर बाईं ओर पत्र भेजने वाले (प्रेषक) का नाम व पता लिखा जाता है।
2. दिनांक- जिस दिन पत्र लिखा जा रहा है, उस दिन की तारीख।
3. विषय- अनौपचारिक पत्रों में विषय का प्रयोग नहीं किया जाता है | सिर्फ औपचारिक पत्रों में विषय का प्रयोग किया जाता है |
4. संबोधन- जिस व्यक्ति को पत्र लिखा जा रहा है, उससे संबंधों के आधार पर संबोधन शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
5. अभिवादन- जिस को पत्र लिखा जा रहा है उसके साथ संबंध के अनुसार, जैसे कि सादर प्रणाम, चरण स्पर्श, नमस्ते, नमस्कार, मधुर प्यार आदि |
6. मुख्य विषय- मुख्य विषय को मुख्यतः तीन अनुच्छेदों में विभाजित करना चाहिए।
      पहला अनुछेद :    इसकी शुरुआत कुछ इस प्रकार होनी चाहिए –  “हम/मैं यहाँ कुशल हूँ, आशा करता हूँ कि आप भी वहाँ कुशल होंगे।”
      दूसरा अनुच्छेद :  पत्र के इस भाग में पत्र की कारन लिखा जा रहा है उन बातों का उल्लेख किया जाना चाहिए।
      तीसरा अनुछेद:    पात्र समाप्त करने से पहले, कुछ वाक्य अपने परिवार व सबंधियों के कुशलता के लिए लिखने चाहिए। जैसे कि- “मेरी तरफ से बड़ों को प्रणाम, छोटों को आशीर्वाद व प्यार
आदि”।
7. समाप्ति- अंत में प्रेषक का सम्बन्ध जैसे- आपका पुत्र, आपकी पुत्री, आपकी की भतीजी आदि”।

अनौपचारिक-पत्र की प्रशस्ति : आरम्भ और समाप्ति में किन शब्दों का प्रयोग करना चाहिए-

(1) अपने से बड़े आदरणीय संबंधियों के लिए-
प्रशस्ति – आदरणीय, पूजनीय, पूज्य, श्रद्धेय आदि।
अभिवादन – सादर प्रणाम, सादर चरणस्पर्श, सादर नमस्कार आदि।
समाप्ति – आपका बेटा, पोता, नाती, बेटी, पोती, नातिन, भतीजा आदि।

(2) अपने से छोटों या बराबर वालों के लिए-
प्रशस्ति – प्रिय, चिरंजीव, प्यारे, प्रिय मित्र आदि।
अभिवादन – मधुर स्मृतियाँ, सदा खुश रहो, सुखी रहो, आशीर्वाद आदि।
समाप्ति – तुम्हारा, तुम्हारा मित्र, तुम्हारा हितैषी, तुम्हारा शुभचिंतक आदि।

औपचारिक और अनौपचारिक पत्रों में अंतर- (Difference between formal and informal letter)

औपचारिक पत्र (formal letter in Hindi) –

उनलोगों को लिखा जाने वाला पत्र औपचारिक पत्र कहलाता है जिनसे हमारा कोई निजी संबंध ना हो। औपचारिक पत्रों को केवल किसी विशेष कार्य से सम्बंधित तथ्यों पर ही केंद्रित रखा जाता है।

व्यवसाय से संबंधी, आवेदन पत्र, प्रार्थना पत्र,  सरकारी विभागों को लिखे गए पत्र  आदि औपचारिक-पत्र कहलाते हैं। औपचारिक पत्रों की भाषा सहज और शिष्टापूर्ण होती है। इन पत्रों में केवल काम या अपनी समस्या के बारे में ही बात कही जाती है।

अनौपचारिक पत्र (informal letter in Hindi ) –

Hindi Writing Letter में अनौपचारिक पत्र उन लोगों को लिखा जाता है जिनसे हमारा व्यक्तिगत सम्बन्ध रहता है। इसे निजी पत्र भी कहते हैं | अनौपचारिक पत्र अपने परिवार के लोगों को जैसे माता-पिता, भाई-बहन, सगे-सम्बन्धिओं और मित्रों को उनका हालचाल पूछने, निमंत्रण देने और सूचना आदि देने के लिए लिखे जाते हैं।

इन पत्रों में भाषा के प्रयोग में थोड़ी ढ़ील की जा सकती है। इन पत्रों में शब्दों की संख्या असीमित हो सकती है क्योंकि इन पत्रों में इधर-उधर की बातों का भी समावेश होता है।

निष्कर्ष :
 किसी भी भाषा में पत्र लेखन एक कला है और उसके विषय में जानना बहुत महत्वपूर्ण है , Hindi Writing Letter भी एक महत्वपूर्ण विषय है इसी लिए हमने इस लेख में Hindi Writing Letter पर वृहद् चर्चा किया है |
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