Dahej Pratha Par Nibandh in Hindi

दहेज़ एक अभिशाप : दहेज़ प्रथा पर निबंध 

ये Dahej Pratha Par Nibandh in Hindi विभिन्न बोर्ड जैसे UPBoard, Bihar Board और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं को दृश्टिगत रखते हुए लिखा गया है, अगर आपके मन  सवाल हो तो comment लिख कर पूछ सकते हैं |

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  • सामाजिक प्रतिष्ठा और दहेज
  • क्या दहेज समाप्त हो सकेगा ?
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बस चले तो दहेज लेनेवालों और देनेवालों को ही गोली मार देनी चाहिए , फिर चाहे फॉसी ही क्यों न हो जाए । पूछो , आप लड़के का विवाह करते हैं कि उसे बेचते हैं । ” – मुंशी प्रेमचन्द 

Dahej Pratha Par Nibandh in Hindi की  रूपरेखा 

  1. प्रस्तावना
  2. दहेज क्या है ?
  3. दहेज – प्रथा के प्रसार के कारण
  4. दहेज – प्रथा के दुष्परिणाम
  5. समस्या का समाधान
  6. उपसंहार

1- प्रस्तावना 

दहेज – प्रथा के विरोध में लिखनेवाले अमर साहित्यकार प्रेमचन्द हैं परन्तु हमने उनकी , उनके विश्वास की और उनके साहित्य की हत्या कर डाली है ।

समाज के जिन कर्णधारों से प्रेमचन्द यह आशा करते थे कि उनकी दहेजविरोधी यथार्थ दृष्टि के सम्मान में वे दहेज का उन्मूलन कर डालेंगे , वे ही प्रथम पंक्ति के सामाजिक गण , यूँ कहिए कि आज के गणमान्य नागरिक ही दहेज लेन – देन के सफल व्यापारी बने हुए हैं ।

आज हम प्रेमचन्द की आवाज का गला घोंटने में कितने सफल हैं , कितने कृतघ्न हैं कि हम उनके प्रति , यदि आत्मविश्लेषण करें तो शायद मुँह छुपाने को भी जगह न मिले ।

दहेज का दानव आज भारतीय समाज में विनाशलीला मचाए हुए है । दहेज के कारण कितनी ही युवतियाँ काल के क्रूर हाथों में सौंपी जा रही हैं । प्रतिदिन समाचार – पत्रों में इन दुर्घटनाओं ( हत्याओं और आत्महत्याओं ) के समाचार प्रकाशित होते रहते हैं ।

नारी – उत्पीड़न के किस्सों को सुनकर कठोर – से – कठोर व्यक्ति का हृदय भी पीड़ा और ग्लानि से भर जाता है । समाज का यह कोढ निरन्तर विकृत रूप धारण करता जा रहा है । समय रहते इस भयानक रोग का निदान और उपचार आवश्यक है ; अन्यथा समाज की नैतिक मान्यताएँ नष्ट हो जाएँगी और मानव – मूल्य समाप्त हो जाएँगे ।

2- दहेज क्या है ?

सामान्यतः दहेज का आशय उन सम्पतियों तथा वस्तुओ से समझा जाता है , जिन्हें विवाह के समय वधू पक्ष की ओर से वर पक्ष का दिया जाता है । मुलतः इसमे स्वेच्छा का भाव निहित था , किन्तु आज दहेज का मलतब इससे बहुत भिन्न हो गया है ।

अब इसका तात्पर्य उस सम्पति अथवा बहुमूल्य वस्तुओं से है , जिन्हें विवाह का एक शर्त के रूप में कन्या – पक्ष द्वारा वर – पक्ष को विवाह से पूर्व अथवा बाद मे देना पड़ता है । वास्तव में इस दहेज की अपेक्षा वर मूल्य कहना अधिक उपयुक्त होगा ।

3- दहेज – प्रथा के प्रसार के कारण

दहेज – प्रथा के विस्तार के अनेक कारण है । इनमें से प्रमुख कारण हैं

( क ) धन के प्रति अधिक आकर्षण – इस भौतिकवादी युग में समाज के अंदर धन का महत्व दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है । धन सामाजिक एवं पारिवारिक प्रतिष्ठा पर्याय बन गया है । मनुष्य येन – केन – प्रकारेण धन के संग्रह में लगा हुआ है । वर – पक्ष एसे परिवार में ही सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है, जो धन – सम्पन्न हो तथा जिससे अधिकाधिक धन प्राप्त हो सके ।

( ख ) सम्बन्ध बनाने के सीमित क्षेत्र – हमारा समाज अनेक जातियों तथा उपजातियों में विभाजित है । सामान्यत : प्रत्येक माँ – बाप अपनी लड़की का विवाह अपनी ही जाति या अपने मे उच्चजाति के लड़के के साथ करना चाहता है ।

इन परिस्थितियों में उपयुक्त वर के मिलने में कठिनाई होती है । फलत : वर – पक्ष की ओर से दहेज की मांग आरम्भ हो जाती है ।

( ग ) बाल – विवाह – बाल – विवाह के कारण लड़के अथवा लड़की को अपना जीवन – साथी चुनने का अवसर नहीं मिलता । विवाह – सम्बन्ध का पूर्ण अधिकार माता – पिता के हाथ में रहता है । ऐसी स्थिति में लड़के के माता – पिता अपने पुत्र के लिए अधिक दहेज की मांग करते हैं ।

( घ ) शिक्षा और व्यक्तिगत प्रतिष्ठा – वर्तमान युग में शिक्षा बहुत महँगी है । इसके लिए पिता को कभी – कभी अपने पुत्र की शिक्षा पर अपनी सामर्थ्य से अधिक घन व्यय करना पड़ता है । इस धन की पूर्ति वह पुत्र के विवाह के अवसर पर दहेज प्राप्त करके करना चाहता है ।

शिक्षित लड़के ऊँची नौकरियाँ प्राप्त करके समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं , परन्तु इनकी संख्या कम है और प्रत्येक बेटीवाला अपनी बेटी का विवाह उच्च नौकरी प्राप्त प्रतिष्ठित युवक के साथ करना चाहता है । अत : इस दृष्टि से भी वर के लिए दहेज की माँग निरन्तर बढ़ती जा रही है ।

( ङ ) विवाह की अनिवार्यता – हिन्दू – धर्म में एक विशेष अवस्था में कन्या का विवाह करना पुनीत कर्तव्य माना गया है तथा कन्या का विवाह न करना ‘ महापातक ‘ कहा गया है ।

प्रत्येक समाज में कुछ लड़कियाँ कुरूप अथवा विकलांग होती हैं , जिनके लिए योग्य जीवन – साथी मिलना प्राय : कठिन होता है । ऐसी स्थिति में कन्या के माता – पिता वर – पक्ष को दहेज का लालच देकर अपने इस ‘ पुनीत कर्त्तव्य ‘ का पालन करते हैं ।

4- दहेज – प्रथा के दुष्परिणाम

दहेज प्रथा ने हमारे सम्पूर्ण समाज को पथभ्रष्ट तथा स्वार्थी बना दिया है । समाज में यह रोग इतने व्यापक रूप से फैल गया है कि कन्या के माता – पिता के रूप में जो लोग दहेज की बुराई करते हैं , वे ही अपने पुत्र के विवाह के अवसर पर मुंहमांगा दहेज प्राप्त करने के लिए लालायित रहते हैं । इससे समाज में अनेक विकृतियाँ उत्पन्न हो गई हैं तथा अनेक नवीन समस्याएँ विकराल रूप धारण करती जा रही हैं ; यथा

(क) बेमेल विवाह – दहेज – प्रथा के कारण आर्थिक रूप से दुर्बल माता – पिता अपनी पत्री के लिए उपयुक्त वर प्राप्त नहीं कर पाते और विवश होकर उन्हें अपनी पुत्री का विवाह ऐसे अयोग्य लड़के से करना पड़ता है , जिसके माता – पिता कम दहेज पर उसका विवाह करने को तैयार हों ।

दहेज न देने के कारण कई बार माता – पिता अपनी कम अवस्था की लड़कियों का विवाह अधिक अवस्था के पुरुषों से करने के लिए भी विवश हो जाते हैं ।

( ख ) ऋणग्रस्तता – दहेज प्रथा के कारण वर – पक्ष की मांग को परा करने के लिए कई बार कन्या के पिता को ऋण भी लेना पड़ता है , परिणामस्वरूप अनेक परिवार आजन्म ऋण की चक्की में पिसते रहते हैं । कन्याओं का दःखद वैवाहिक जीवन – वर – पक्ष की मांग के अनसार दहेज न देने अथवा दहजम किसी प्रकार की कमी रह जाने के कारण ‘ नव – वधू ‘ को ससुराल में अपमानित होना पड़ता है ।

( घ ) आत्महत्या – दहेज के अभाव में उपयुक्त बर न मिलने के कारण अपने माता – पिता को चिन्तामुक्त करने हेतु अनेक लड़कियां आत्महत्या भी कर लेती है । कभी – कभी ससराल के लोगों के ताने सुनने एवं अपमानित होने पर विवाहित स्त्रियाँ भी अपने स्वाभिमान की रक्षा हेतु आत्महत्या कर लेती हैं ।

( ङ ) अविवाहिताओं की संख्या में वृद्धि – दहेज – प्रथा के कारण कई बार निर्धन परिवारों का लड़किया को उपयुक्त वर नहीं मिल पाते । आर्थिक दृष्टि से दुर्बल परिवारों को जागरूक यवतियां गुणहीन तथा निम्नस्तराय युवकों से विवाह करने की अपेक्षा अविवाहित रहना उचित समझती हैं , जिससे अनैतिक सम्बन्धा आर यौन – कुण्ठाओ जैसी अनेक सामाजिक विकृतियों को बढ़ावा मिलता है ।

5- समस्या का समाधान

दहेज – प्रथा समाज के लिए निश्चित ही एक अभिशाप है । कानून एवं समाज – सुधारकों ने दहेज से मुक्ति के अनेक उपाय सुझाये है । यहाँ पर उनके सम्बन्ध में संक्षेप में विचार किया जा रहा है

( क ) कानून द्वारा प्रतिबन्ध – अनेक व्यक्तियों का विचार था कि दहेज के लेन – देन पर कानून द्वारा प्रतिबन्ध लगा दिया जाना चाहिए । फलतः 9 मई , 1961 ई० को भारतीय संसद में ‘ दहेज निरोधक अधिनियम स्वीकार कर लिया गया ।

विवाह तय करते समय किसी भी प्रकार की शर्त लगाना कानूनी अपराध होगा , जिसके लिए उत्तरदायी व्यक्तियों को 6 मास का कारावास तथा 5 हजार रुपये तक का आर्थिक दण्ड दिया जा सकता है ।

( ख ) अन्तर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन – अन्तर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन देने से वर का चुनाव करने के क्षेत्र में विस्तार होगा तथा युवतियों के लिए योग्य वर खोजने में सुविधा होगी । इससे दहेज की माँग में भी कमी आएगी ।

( ग ) युवकों को स्वावलम्बी बनाया जाए – स्वावलम्बी होने पर युवक अपनी इच्छा से लड़की का चयन कर सकेंगे । दहेज की मांग अधिकतर युवकों की ओर से न होकर उनके माता – पिता की ओर से होती है । स्वावलम्बी युवकों पर माता – पिता का दबाव कम होने पर दहेज के लेन – देन में स्वत : कमी आएगी ।

( घ ) लड़कियों की शिक्षा – जब युवतियाँ भी शिक्षित होकर स्वावलम्बी बनेंगी तो वे अपना जीवन – निर्वाह करने में समर्थ हो सकेगी । दहेज की अपेक्षा आजीवन उनके द्वारा कमाया गया धन कहीं अधिक होगा ।

इस प्रकार की युवतियों को दष्टि में विवाह एक विवशता के रूप में भी नहीं होगा , जिसका वर – पक्ष प्राय : अनुचित लाभ उठाता है ।

( ङ ) जीवन – साथी चुनने का अधिकार – प्रबुद्ध युवक – युवतियों को अपना जीवन – साथी चुनने के लिए अधिक छट मिलनी चाहिए । शिक्षा के प्रसार के साथ – साथ युवक – युवतियों में इस प्रकार का वैचारिक परिवर्तन सम्भव है ।

इस परिवर्तन के फलस्वरूप विवाह से पूर्व एक – दूसरे के विचारों से अवगत होने का पूर्ण अवसर प्राप्त हो सकेगा ।

12- उपसंहार :

उपसंहार दहेज प्रथा एक सामाजिक बुराई है , अत : इसके विरुद्ध स्वस्थ जनमत का निर्माण करना चाहिए । जब तक समाज में जागृति नहीं होगी , दहेजरूपी दैत्य से मुक्ति कठिन है । राजनेताओं , समाज – सुधारकों तथा युवक – युवतियों आदि सभी के सहयोग से ही दहेज – प्रथा का अन्त हो सकता है ।

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