क्या भारत सरकार नए नोट छापकर विदेशी कर्ज चुका सकती है?

Can Government Print Currency for Repay Debt

हम अक्सर ये सोचते हैं कि अगर सरकार के पास नोट छापने कि मशीन है, फिर भी वो विदेशों के कर्ज को क्यूँ नहीं चुका पाती है|

बहुत से लोग सोचते हैं कि जब भारत के ऊपर दिसम्बर 2018 तक 510.4 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज चढ़ा हुआ था और भारत सरकार के पास रुपये छापने की मशीन भी है तो क्यों भारत सरकार ऐसा नहीं करती कि नए रुपये छापकर विदेशी कर्ज चुका दे |

इस गुत्थी को सुलझाने के लिए विस्तार से चर्चा करते हैं-

भारत में नोटों की छपाई

भारत में नोटों की छपाई का काम न्यूनतम आरक्षित प्रणाली (Minimum Reserve System) के आधार पर किया जाता है. यह प्रणाली भारत में 1957 से लागू है.

सके अनुसार रिज़र्व बैंक को यह अधिकार है कि वह RBI फंड में कम से कम 200 करोड़ रुपये मूल्य की संपत्ति हर समय अपने पास रखे. इस 200 करोड़ रूपए में 115 करोड़ रूपए का सोना और शेष 85 करोड़ रूपए की विदेशी संपत्तियां रखना जरूरी होता है|

इतनी संपत्ति रखने के बाद RBI देश की जरुरत के हिसाब से कितनी भी बड़ी मात्रा में नोट छाप सकती है हालांकि उसे सरकार की अनुमति लेनी होती है |

RBI अपने रिज़र्व फंड में 200 करोड़ रुपये की मुद्रा इसलिए रखती है ताकि रिज़र्व बैंक के गवर्नर की शपथ “मैं भारत को 10 या 2000 रुपये अदा करने का वचन देता हूँ” को पूरा किया जा सके.

भारत के विदेशी कर्ज किस मुद्रा में है-

जून 2019 के अंत तक भारत के ऊपर विदेशी ऋण USD 557.4 billion था जो इसकी जीडीपी का लगभग 21 प्रतिशत था | अगर विदेशी मुद्रा भंडार के अनुपात के रूप में देखा जाय तो यह कर्ज विदेशी मुद्रा भंडार का 80.2% हो गया है |

यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि भारत के ऊपर जितना विदेशी ऋण है उसका एक बड़ा हिस्सा डॉलर मुद्रा के रूप में है |

भारत की उधारी में सबसे बड़ा हिस्सा कुल ऋण का 38.2% कमर्शियल बोर्रोविंग्स (Commercial borrowings) का है | इसके बाद दूसरा बड़ा हिस्सा 23.8% गैर निवासी भारतीयों द्वारा भारत में जमा किया गया धन है.

“यह भी ध्यान रहे कि भारत जिस मुद्रा में उधार लेता है उसी मुद्रा में चुकाना पड़ता है.”

भारत के पास निम्न स्रोतों से डॉलर आता है-

अब बात आती है कि जब विदेशी ऋण का भुगतान डॉलर मे ही होता है तो इतना डॉलर देश के पास आता कहाँ से है, तो इसके लिए नीचे दिये गए बिन्दुओं पर चर्चा कीजिये-

  1. विदेशी निवेश से अर्थात जब कोई विदेशी कम्पनी भारत में निवेश करती है तब वह अपने साथ डाँलर लेकर आती है |
  2. निर्यात से अर्थात जब हम अपने यहाँ से किसी वस्तु को किसी दूसरे देश में बेचते हैं तो हमें डाँलर मिलता है |
  3. विदेशों में रहने वाले भारतीयों के द्वारा जो पैसा भेजा जाता है वह डाँलर के रूप में भारत को मिलता है |
  4. विदेशी स्टूडेंट्स जो कि भारत में पढ़ने आते हैं वे भी डॉलर लेकर आते हैं |
  5. विदेशी पर्यटकों के द्वारा भी डाँलर प्राप्त होता है |
  6. भारत को विदेशों से जो भी मदद मिलती है वो भी डॉलर में ही होती है |

क्या भारत सरकार नए रुपये छापकर विदेशी कर्ज चुका सकती है?

अब आते है अपने असली प्रश्न पर, तो अगर मैं इसका सीधा उत्तर दूँ तो नहीं भारत सरकार नये रुपये छापकर कर्ज इसलिए नहीं छाप सकती है क्योंकि;

1- भारत को कर्ज डॉलर में चुकाना है भारतीय रुपयों में नहीं अगर भारत सरकार नए रुपये छाप लेती है तो जिस देश या संस्था से सरकार ने कर्ज ले रखा है वह भारत के रुपयों को लेने से मना कर देगी |

2- इस प्रकार नए रुपये छापने का कोई तर्क नहीं बनता है, नए रुपये छापने से देश में नोटों की छपाई का खर्चा बिना किसी फायदे के बढ़ जायेगा |

  • लेकिन यदि बाहरी देश और संस्थाएं भारत की मुद्रा में कर्ज वापस लेने को तैयार हो जातीं हैं तो जरूर भारत का कर्ज उतारा जा सकता है| लेकिन ये देश और संस्थाएं ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि भारतीय रुपया ग्लोबल करेंसी नहीं मानी जाती है.
  • ध्यान रहे कि रूपये का अपना कोई मूल्य नहीं होता है | इसका मूल्य इससे मिलने वाली वस्तु के कारण है अर्थात “मूल्य” वस्तु में है कागज के नोट में नहीं.
  • उदाहरण के लिए मान लीजिए आप के पास 1 लाख रूपये है और आप एक AC खरीदना चाहते हैं और वह बाजार में उपलब्ध भी है तो आप अपने पास उपलब्ध रूपये का उपयोग कर AC खरीद सकते हैं. अब मान लीजिए आप कुछ ऐसी वस्तु खरीदना चाहते है जो अपने देश के बाजार में उपलब्ध नहीं है तो आपके 1 लाख रूपये का कोई महत्व नहीं है.
  1. अगर भारत सरकार नए रुपये छापती है तो देश में मुद्रा की पूर्ती बढ़ जाएगी जिससे मुद्रास्फीति अर्थात महंगाई बढ़ जाएगी| जैसे जो चीज अभी आपको 100 रुपये में मिल रही है तो नयी मुद्रा के छपने के बाद 150 या 200 रुपये में मिलेगी, इससे देश में किसी का भला नहीं होगा क्योंकि हर चीज के दाम उसी अनुपात में बढ़ जायेंगे किस अनुपात में मुद्रा की पूर्ती बढ़ेगी |

निष्कर्ष : 

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि भारत सरकार अनगिनत रुपया छाप सकती है लेकिन इस छपाई से यदि देश में महंगाई बढती है, गरीबी में कोई कमी नहीं आती है और विदेशी कर्ज नहीं उतारा जा सकता है तो फिर अनगिनत रुपये छापना देश हित में नहीं है |

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