Badhti Jansankhya Par Nibandh

 परिवार नियोजन पर निबंध/ बढती जनसँख्या पर निबंध 

ये Badhti Jansankhya Par Nibandh  विभिन्न बोर्ड जैसे UP Board, Bihar Board और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं को दृश्टिगत रखते हुए लिखा गया है, अगर आपके मन  सवाल हो तो comment लिख कर पूछ सकते हैं |

इस शीर्षक से मिलते-जुलते अन्य सम्बंधित शीर्षक –

  • परिवार नियोजन और भारत
  • जनसंख्या – विस्फोट की समस्या और निदान
  • जनसंख्या – वृद्धि : कारण और निवारण
  • सुखी परिवार का आधार छोटा परिवार ( 2004 )
  • बढ़ती जनसंख्या : एक गम्भीर समस्या ( 2000 )
  • छोटा परिवार सुखी परिवार ( 2005 )

” जनसंख्या में तेजी से वृद्धि , विकास से मिलने वाले लाभों को समाप्त कर देती है। भारत परिवार नियोजन को राष्ट्रीय नीति के रूप में अपनाने वाले सबसे पहले देशों में है। भारत में परिवार नियोजन हमारी आर्थिक विकास की योजना का एक भाग है । ” – इन्दिरा गांधी 

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Badhti Jansankhya Par Nibandh की  रूपरेखा 

  1. प्रस्तावना
  2. भारतवर्ष में जनसंख्या – वृद्धि के कारण
  3. जनसंख्या की उत्तरोत्तर वृद्धि से हानि 
  4. परिवार नियोजन से लाभ
  5. पंचवर्षीय योजनाओं में परिवार नियोजन की प्रगति
  6. परिवार नियोजन अथवा जनसंख्या समाधान के उपाय
  7. उपसंहार

1- प्रस्तावना Badhti Jansankhya par Nibandh Hindi Mein

जिस देश को कभी सोने की चिड़िया कहा जाता था , जहाँ कभी दूध की नदियाँ बहा करती थीं , उसी देश के अधिकांश बच्चों को शायद आज दूध के रंग का भी पता न हो । आज असंख्य लोगों को रहने के लिए घर , तन ढकने के लिए पर्याप्त वस्त्र और खाने के लिए पेट भर भोजन भी नहीं मिल पाता ।

आखिर क्यों ?

इसका एकमात्र कारण है – जनसंख्या की अत्यधिक वृद्धि । जनसंख्या की इस अपार वृद्धि के कारण सम्पूर्ण देश की प्रगति अवरुद्ध हो रहा है । भारतवर्ष में विश्व की जनसंख्या का छठा भाग निवास करता है ।

सन् 1981 ई० की जनगणना के अनुसार भारतवर्ष की जनसंख्या 68.38 करोड़ थी, जबकि 1991 ई० की जनगणना के अनुसार यह संख्या बढ़कर 84. 39 करोड़ हो गई और 1 मार्च, 2001 ई० को भारत की जनसंख्या 1,02,87,37,436 हो गई ।

भारत की मौजूदा आबादी 1 अरब 21 करोड़ है. – 2001 से 2011 में भारत की जनसंख्या 17.6 प्रतिशत की दर से 18 करोड़ बढ़ी है. – ये वर्ष 1991-2001 की वृद्धि दर, 21.5 प्रतिशत, से करीब 4 प्रतिशत कम है. – भारत और चीन की आबादी का अंतर दस साल में घटकर 23 करोड़ 80 लाख से 13 करोड़ 10 लाख रह गया है

इस जनसख्या में 53,22,23,090 पुरुष तथा 49,65,14,346 महिलाएँ समाहित हैं । यद्यपि जनसंख्या किसी देश अथवा राज्य का प्रमुख तत्त्व हैं और उसके बिना किसी राज्य एवं जाति की कल्पना भी नहीं की जा सकती ; किन्तु ‘ अति सर्वत्र वर्जयेत् ।

जनसंख्या की वृद्धि का यह दानव आज सम्पूर्ण भारतवर्ष के सामने मुंह खोले खड़ा है ; क्योकि जिस गति से भारतवर्ष में जनसंख्या की वृद्धि हो रही है , वह अत्यधिक दुःखदायी है ।

2- भारतवर्ष में जनसंख्या – वृद्धि के कारण

भारतवर्ष में जनसंख्या की अत्यधिक वृद्धि के कुछ विशेष कारण हैं , जिनमें बाल – विवाह , बहु – विवाह , दरिद्रता , मनोरंजन के साधनों का अभाव , गर्म जलवायु , अशिक्षा , रूढ़िवादिता , ग्रामीण क्षेत्रों में सन्तति – निरोध की सुविधाओं का कम प्रचार हो पाना , परिवार नियोजन के नवीनतम साधनों की अनभिज्ञता एवं पुत्र की अनिवार्यता आदि मुख्य कारण हैं ।

3- जनसंख्या की उत्तरोत्तर वृद्धि से हानि 

भारत की वर्तमान आर्थिक , सामाजिक एवं राजनैतिक समस्याओं का मुख्य कारण बढ़ती हुई जनसंख्या है ।

ऋग्वेद ‘ में कहा गया है – ” जहाँ प्रजा का आधिक्य होगा , वहाँ निश्चय ही दुःख एवं कष्ट की मात्रा अधिक होगी । “

यही कारण है कि आज भारत में सर्वत्र अशिक्षा , गरीबी , बेरोजगारी , भुखमरी , निम्न जीवन – स्तर , सामाजिक कलह , अस्वस्थता एवं खाद्यान्न संकट आदि अनेकानेक समस्याएँ निरन्तर बढ़ रही है । निश्चय ही जनसंख्या का यह विस्फोट भारत के लिए अभिशाप है ।

प्रसिद्ध अर्थशास्त्री माल्थस का विचार है कि ” जनसंख्या की वृद्धि गुणोत्तर गति से होती है , जबकि उत्पादन अंकगणितीय गति से ।”

प्रो० कारसाण्डर्स का अनुमान है कि ” संसार की जनसंख्या में एक प्रतिशत प्रति वर्ष की गति से वृद्धि हो रही है । “

यदि यह वृद्धि इसी गति से होती रही तो पाँच – सौ वर्ष पश्चात् मनुष्यों को पृथ्वी पर खड़े होने की जगह भी नहीं मिल पाएगी । हमारे देशवासी जनसंख्या की वृद्धि से होनेवाली हानियों के प्रति आज भी लापरवाह हैं । इतना ही नहीं , वे सन्तान को ईश्वर की देन मानते हुए उसके जन्म पर नियन्त्रण करना पाप मानते हैं ।

निश्चित ही जनसंख्या की वृद्धि का यदि यही क्रम रहा तो मानव – जीवन अत्यधिक संघर्षपूर्ण एवं अशान्त हो जाएगा ।

भूतपूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने जनसंख्या विस्फोट से होनेवाली हानि पर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा था कि “ जनसंख्या के तीव्रगति से बढ़ते रहने पर योजनाबद्ध विकास करना , बहुत – कुछ ऐसी भूमि पर मकान खड़ा . करने के समान है , जिसे बाढ़ का पानी बराबर बहाए ले जा रहा है । “

4. परिवार नियोजन से लाभ

संसार के समस्त प्राणी अपने जीवन को सुखी एवं व्यवस्थित बनाना चाहते हैं । ऐसा तभी सम्भव है , जबकि व्यय का अनुपात आय के अनुकूल हो । व्यक्ति व्यय को तो नियन्त्रित कर सकता है , किन्तु आय की सीमाएँ होती है ।

यदि परिवार सीमित है तो व्यक्ति कम आय में भी अपने बच्चों की पढ़ाई – लिखाई । पर ध्यान दे सकता है और स्वयं को भी व्यवस्थित रख सकता है । परिवार सीमित रहे , इसके लिए परिवार नियोजन आवश्यक है ।

बढ़ती हुई जनसंख्या पर नियन्त्रण रखने का सर्वोत्तम साधन ब्रह्मचर्य का पालन है ; किन्तु इस भौतिकवादी युग में इसका पूर्णतया पालन सम्भव प्रतीत नहीं होता । नियोजित परिवार के लाभ हमारे देशवासियों से छिपे नहीं हैं । ‘ छोटा परिवार सुखी परिवार ‘ का सन्देश अब जन – जन का कण्ठहार बन गया है ।

परिवार नियोजन का चिह्न ‘ लाल तिकोन ‘ है जो ‘ स्वास्थ्य , शिक्षा एवं समृद्धि ‘ अथवा ‘ सुख , शान्ति और विकास ‘ का प्रतीक है । यह चिह्न पति , पत्नी एवं बालक ‘ का भी सूचक है । परिवार नियोजन से देश , समाज तथा व्यक्ति तीनों को ही लाभ हैं ।

परिवार नियोजन अपनाकर प्रत्येक व्यक्ति अपना जीवन सुख एवं शान्ति से व्यतीत कर सकेगा , उसके रहन – सहन का स्तर ऊंचा हो सकेगा तथा वह अपने आश्रितों की प्रत्येक आवश्यकता की पूर्ति करता हुआ उन्हें अधिक सुखी रख सकेगा ।

वास्तव में कम बच्चो वाले माता – पिता अपने बच्चों की शिक्षा एवं उनके स्वास्थ्य का समुचित प्रबन्ध अवश्य कर सकते हैं । इस प्रकार देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने एवं निर्धनता के अभिशाप को दूर करने में परिवार नियोजन का महत्त्वपूर्ण स्थान है ।

5. पंचवर्षीय योजनाओं में परिवार नियोजन की प्रगति

प्रथम पंचवर्षीय योजना में परिवार नियोजन कार्यक्रम केवल शहरी अस्पतालों तक ही सीमित रहा । केन्द्रीय सरकार ने 146 तथा राज्य सरकारों ने 205 परिवार नियोजन केन्द्र शहरों व गाँवों में स्थापित किए ।

द्वितीय पंचवर्षीय योजना में परिवार नियोजन कार्यक्रम को गाँवों तक पहुचाने की चेस्टा की गई । तृतीय पंचवर्षीय योजना में सरकार ने ग्रामीणों को परिवार नियोजन की आवश्यकता एवं उसके महत्त्व का ज्ञान कराकर उन्हें इस कार्यक्रम को अपनाने के लिए प्रेरित किया ।

चतुर्थ योजनाकाल में केन्द्रों की संख्या न बढ़ाकर पुराने केन्द्रों पर ही सुविधाएँ बढ़ाने का प्रयत्न किया गया । पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में परिवार नियोजन को राष्ट्रीय स्तर पर अत्यधिक महत्त्व देकर इस कार्यक्रम के तीव्र क्रियान्वयन हेतु 516 करोड़ रुपयों की व्यवस्था की गई । साथ ही परिवार नियोजन अपनाने वाले दम्पतियों को पुरस्कार आदि देकर प्रोत्साहित किया गया ।

इसके अतिरिक्त भारत सरकार ने जनसंख्या विस्फोट पर नियन्त्रण हेतु ‘ गर्भपात अधिनियम ‘ भी बनाया , जिससे अनचाहे गर्भ से छुटकारा पाने को वैधानिक समर्थन प्राप्त हुआ। छठी , सातवीं तथा आठवीं पंचवर्षीय योजनाओं में भी सरकार ने इस ओर विशेष ध्यान दिया ।

अब प्रत्येक गाँव में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र खोले जाएंगे और वहाँ परिवार नियोजन – सम्बन्धी पूर्ण सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँगी तथा जगह – जगह पर कैम्प लगाकर नवीन पद्धतियों के माध्यम से परिवार – नियोजन – कार्यक्रम में तीव्रता लाई जाएगी ।

नवीं पंचवर्षीय योजना में गरीबी उन्मूलन का प्रमुख लक्ष्य रखा गया , जिसमें परिवार को सीमित किए जाने को कारगर उपाय के तौर पर अपनाने पर बल दिया गया । सीमित परिवार के सफल कार्यान्वयन हेतु स्थानीय निकाय , गैर – सरकारी संगठनों की सक्रिय भागीदारी को महत्त्व दिया गया ।

दसवीं पंचवर्षीय योजना ( 2002 – 07 ) के लिए योजना आयोग ने दिशा – पत्र जारी किया । इसमें स्वास्थ्य सेवाओं के लिए विशिष्ट अवदान मुक्त करने का उपाय सुझाया गया था । यह माना गया कि स्वस्थ परिवारों में सदस्यों की सीमा सुनिश्चित होती है , जबकि गरीबी व विशाल सदस्यों की संख्या के परिवारों में घनिष्ठता होती है ।

अत : माता – पिता तथा उनके एक बच्चे के परिवार को अब आदर्श परिवार के रूप में निरूपित किया गया है । ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना – ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना ( 2007 – 12 ) में परिवार नियोजन के लिए ग्रामीण एवं नगरीय स्तर के निकायों को जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वे जनसंख्या वृद्धि रोकने हेतु जारी कार्यक्रमों का क्रियान्वयन करें ।

6.परिवार नियोजन अथवा जनसंख्या समाधान के उपाय

जनसंख्या की वृद्धि को रोकने के लिए कुछ उपाय निम्नलिखित प्रकार के हो सकते हैं

  1. बाल – विवाह एवं बहु – विवाह जैसी कुप्रथाओं पर रोक लगाई जाए ।
  2. परिवार नियोजन कार्यक्रम का व्यापक प्रचार किया जाए ।
  3. विवाह की आयु में वृद्धि करके लड़कियों के लिए न्यूनतम आयु 20 वर्ष तथा लड़कों के लिए 25 वर्ष निर्धारित की जाए ।
  4. बच्चों की आयु में अन्तर रखने के लिए परिवार नियोजन सम्बन्धी सामग्री अपनाने की प्रेरणा दी जाए ।

अधिक बच्चों को जन्म देने वाले माता – पिता को हतोत्साहित किया जाए । इसके लिए उन्हें विभिन्न शासकीय सुविधाओं से वंचित रखा जाए , भले ही वे किसी भी वर्ग के हों ।

7- उपसंहार :

आज भारतवर्ष में वे कुप्रथाएँ समाप्त होती जा रही हैं , जिनसे जनसंख्या में वृद्धि हो रही थी । बाल – विवाह जैसी कुप्रथा अब लगभग समाप्त हो गई है और शिक्षा का निरन्तर प्रसार हो रहा है , परिणामतः भारतीय जनता परिवार नियोजन के महत्त्व को जानकर जनसंख्या की वृद्धि को रोकने के लिए प्रयासरत है ।

चिकित्सा – क्षेत्र में नवीन पद्धतियों के आने से , गर्भ निरोध के साधनों के प्रति जनता का भय समाप्त हो गया है । यदि भारतवासी समझदारी से काम लेते रहे और हमारी सरकार इस विषय पर प्रयत्नशील रही तो परिवार नियोजन हमारे देश का मुख्य कार्यक्रम बन जाएगा ।

यदि यह कार्यक्रम पूरी तरह से समाज का अंग बन गया तो हमारे देश और समाज की अनेकानेक समस्याएँ स्वतः ही हल हो जाएँगी ।

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